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क़फ़स को जानते हैं 'यास' आशियाँ अपना

यगाना चंगेज़ी

क़फ़स को जानते हैं 'यास' आशियाँ अपना

यगाना चंगेज़ी

MORE BYयगाना चंगेज़ी

    रोचक तथ्य

    1916

    क़फ़स को जानते हैं 'यास' आशियाँ अपना

    मकान अपना ज़मीन अपनी आसमाँ अपना

    हवा-ए-तुंद में ठहरा आशियाँ अपना

    चराग़ जल सका ज़ेर-ए-आसमाँ अपना

    सुना है रंग ज़माना का ए'तिबार नहीं

    बदल जाए यक़ीं से कहीं गुमाँ अपना

    बस एक साया-ए-दीवार-ए-यार क्या कम है

    उठा ले सर से मिरे साया आसमाँ अपना

    मज़े के साथ हों अंदोह-ओ-ग़म तो क्या कहना

    यक़ीं हो तो करे कोई इम्तिहाँ अपना

    शरीक-ए-हाल हुआ है जो फ़क्र-ओ-फ़ाक़ा में

    गढ़ेगा साथ ही क्या अपने मेहमाँ अपना

    अजीब भूल-भुलय्याँ है मंज़िल-ए-हस्ती

    भटकता-फिरता है गुम-गश्ता कारवाँ अपना

    किधर से आती है यूसुफ़ की बू-ए-मस्ताना

    ख़राब फिरता है जंगल में कारवाँ अपना

    जरस ने मुज़्दा-ए-मंज़िल सुना के चौंकाया

    निकल चला था दबे पाँव कारवाँ अपना

    ख़ुदा किसी को भी ये ख़्वाब-ए-बद दिखलाए

    क़फ़स के सामने जलता है आशियाँ अपना

    हमारे क़त्ल का वा'दा है ग़ैर के हाथों

    अजीब शर्त पे ठहरा है इम्तिहाँ अपना

    हमारा रंग-ए-सुख़न 'यास' कोई क्या जाने

    सिवाए 'आतिश' हुआ कौन हम-ज़बाँ अपना

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kulliyat-e-Yagana (पृष्ठ 228)
    • रचनाकार : Meerza Yagana Changezi Lukhnawi
    • प्रकाशन : Farib Book Depot (P) Ltd. (2005)
    • संस्करण : 2005

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