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बंदरिया बहू बेगम

अनजुम क़िदवई

बंदरिया बहू बेगम

अनजुम क़िदवई

MORE BYअनजुम क़िदवई

    रोचक तथ्य

    Folklore (I heard this story from my father in the village)

    किसी दूर-दराज़ के मुल्क में एक बादशाह रहा करता था जिसके तीन बेटे थे तीनों बहुत ज़हीन और तमाम अमल-ओ-फ़न में यकता थे। तीर-अंदाज़ी हो या तलवार चलाने के जौहर, जंग की तमाम बारीकियों से वाक़िफ़ थे।

    शहज़ादे जवान हो चुके थे, बादशाह की ख़्वाहिश थी कि उनकी शादी कर दी जाये। बादशाह ने ज्योतिषी को बुलाया और उससे अपने दिल की बात बताई। ज्योतिषी ने दो दिन का वक़्त माँगा और तीसरे दिन दरबार में आकर बादशाह को अपनी राय से आगाह किया। उसने बताया कि तीनों की कुंडली देखी तो एक बात नज़र आई कि इन लोगों की शादी करना आसान नहीं एक लड़के की शादी में मुश्किल सकती है।

    “अब वो लड़का कौन है ये मैं नहीं बता सकता। उनको मेरे साथ जंगल भेज दीजिए मैं कोई तरकीब करता हूँ।” लिहाज़ा ये तीनों ज्योतिषी के साथ जंगल गए। वहाँ एक दरख़्त के पास जाकर ज्योतिषी ने कहा कि तुम तीनों अपनी-अपनी कमान से तीर चलाओ... जहाँ भी जिस मुल्क की तरफ़ तीर जाएगा वहाँ की शहज़ादी को पैग़ाम भेज दिया जाए।

    तीनों बेटों ने कमान में तीर लगा कर छोड़ा। बड़े बेटे का तीर उत्तर की एक बहुत बड़ी रियासत की तरफ़ पाया गया दूसरे बेटे का तीर दक्कन की रियासत की तरफ़ पाया गया तीसरे बेटे ने जो तीर चलाया वो एक पेड़ पर बैठी बंदरिया की दुम में अटक गया।

    वो पेड़ से उतारी गई और तय हुआ कि छोटे बेटे की शादी उसी बंदरिया के साथ की जाएगी। वो बहुत दुखी और शर्मिंदा था मगर मजबूरी थी। पहले बच्चे वालिदैन की बात नहीँ टालते थे इस लिए वो ख़ामोश हो गया।

    सब शहज़ादों की शादी बहुत धूम-धाम से हुई। दो मुल्कों की शहज़ादियाँ महल में उतरीं मगर तीसरी के लिए छोटे शहज़ादे की ख़्वाहिश पर अलग महल का इंतिज़ाम किया गया।

    दोनों बड़े शहज़ादे अपनी रानियों के साथ ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम ज़िंदगी बसर करने लगे मगर छोटे शहज़ादे के पास तो दुल्हन के नाम पर एक बंदरिया थी वो बहुत परेशान और शर्मिंदा रहता था।

    एक बार बादशाह और उनकी मलिका ने कहा कि वो अपनी बहुओं का सलीक़ा देखना चाहते हैं लिहाज़ा उनको एक-एक रूमाल काढ़ने के लिए दिया गया। दोनों बहुएं अपने हुनर दिखाने के लिए मेहनत से रूमाल पर फूल-बूटे बनाने लगीं। छोटे शहज़ादे को बहुत शर्मिंदगी हुई मगर जब बंदरिया ने उनसे पूछा तो उसने ये बात बता दी। बंदरिया ने कहा कि वो रूमाल ले आए।

    जब सब के रूमाल बन कर तैयार हुए तो बादशाह और मलिका की हैरत की इंतिहा नहीं रही कि सबसे ख़ूबसूरत कढ़ाई छोटे शहज़ादे की बीवी ने की थी, जबकि वो बंदरिया थी।

    दोनों बड़ी बहुओं को बहुत बुरा भी लगा।

    चंद दिन बाद बादशाह और मलिका ने कहा कि वो बहुओं के हाथ का बना खाना खाना चाहते हैं। दोनों बहुएं तैयारी में लग गईं। मगर छोटा शहज़ादा अफ़्सुर्दा हो गया। बंदरिया ने जब पूछा तो कहा कोई बात नहीं मैं खाना पका कर दूँगी। आप भिजवा दीजिएगा। सब के पकाए खाने तख़्त पर चुन दिए गए।

    दोनों नई दुल्हनों के खाने की ख़ूब ता’रीफ़ हुई जब तीसरा ख़्वान खुला तो ख़ुशबू से सारा दालान महक गया... खाने इस क़दर ख़ूबसूरत और रंगीन थे कि सबकी नज़रें उन पर जम गईं... और जब वो खाना बादशाह और मलिका ने खाया तो वाह-वाह करने लगे... सबसे मज़ेदार और नफ़ासत से बनाया हुआ खाना छोटी रानी का था जो बंदरिया थी।

    मलिका और बादशाह को एक बार फिर सब दुल्हनों को एक साथ देखने को दिल चाहा।

    इस बार छोटा शहज़ादा रो पड़ा... खाने और रूमाल तक तो बात ठीक थी मगर इन हसीन-तरीन शहज़ादियों के दरमियान ये बंदरिया कैसे जाएगी। बंदरिया के पूछने पर शहज़ादे ने सारा माजरा कह दिया।

    छोटी बहू ने तसल्ली दी और कहा शर्त यही है कि आप वहाँ जाईएगा। मैं डोली में बैठ कर अकेली ही जाउंगी शहज़ादा पहले ही शर्मिंदा था फ़ौरन मान गया।

    पहले बड़ी दुल्हन सामने आईं।

    बहुत हसीन लड़की थी। गुलाबी लिबास में सज रही थी।

    मंझली दुल्हन ने हरा लिबास पहना था और बहुत सारे ज़ेवरात से आरास्ता थी।

    फिर डोली से छोटी दुल्हन को उतारा गया उसके गोरे सफ़ेद पैरों में पाज़ेब जगमगाई और जब उसने चादर उल्टी तो मलिका और बादशाह उसको देखते ही रह गए।

    गहरे सुर्ख़-रंग में एक नगीना की सूरत। उसने झुक कर सलाम किया... उसके बालों में अफ़्शाँ चमक रही थी। गुलाबी चेहरा, ख़ूबसूरत होंट और छरेरा बदन वो एक फूलों की डाली सी महसूस हो रही थी। तीनों बहुएं साथ बैठी थीं और उसके चेहरे की रौशनी से सारा महल रौशन था। सारे लोग हैरत से उसे देख रहे थे।

    किसी ने छोटे शहज़ादे तक ये ख़बर पहुँचा दी कि उसकी दुल्हन तो एक परी जैसी है। शहज़ादे ने शर्त तोड़ दी और छुप कर उसे देखा। और घोड़े पर बैठ कर वापिस अपने महल पहुँचा। अपनी दुल्हन के कमरे में जाकर उसने देखा कि बंदरिया की खाल एक तरफ़ रखी है। उसने फ़ौरन वो खाल उठाई और मशाल से उसको आग दी... उधर छोटी दुल्हन को अचानक बहुत बेचैनी हुई और वो इजाज़त तलब कर के डोली में बैठ गई।

    उसकी पाज़ेब से पैर झुलसने लगे थे। धीरे-धीरे सारे जिस्म में आग भरने लगी वो जलने लगी। डोली जब तक महल में पहुँची वो काफ़ी जल चुकी थी भागती हुई कमरे में आई और शहज़ादे से अपनी खाल खींच ली। मगर खाल का बहुत हिस्सा जल चुका था... और वो भी बुरी तरह जल चुकी थी। वो ज़मीन पर गिर कर तड़पने लगी। शहज़ादा घबरा गया... हकीम बुलाए गए सबने ईलाज की कोशिश की मगर जलन किसी तौर कम हुई।

    दूसरे मुल्कों से भी तबीब आए मगर उसकी जलन कम कर सके।

    शहज़ादा बहुत शर्मिंदा था और परेशान भी।

    पूरी सल्तनत के तबीब चुके थे और तरह-तरह के ईलाज तज्वीज़ किये जा रहे थे मगर जलन किसी सूरत कम नहीं हो रही थी।

    शहज़ादा बे-क़रार हो कर टहल रहा था और खाल जलाने पर बेहद शर्मिंदा था। वो टहलता हुआ महल के बाग़ में गया। उसकी बेचैनी किसी तौर कम नहीं हो रही थी एक बड़े दरख़्त से टेक लगा कर खड़ा हो गया।

    उस दरख़्त पर दो चिड़ियाँ आपस में बातें कर रही थीं। शहज़ादे ने ध्यान से सुना वो कह रही थीं...

    “वो बंदरिया नहीं परिस्तान की शहज़ादी है। उसकी एक छोटी सी ग़लती पर इतनी बड़ी सज़ा मिली है।”

    “मगर उसने क्या ग़लती की थी कि उसको बंदरिया बना दिया?” दूसरी चिड़िया ने पूछा...

    “परिस्तान के लोग दुनिया में आना पसंद नहीं करते। यहाँ के लोग लड़ते-झगड़ते रहते हैं इस लिए परिस्तान में किसी को इस दुनिया में आने की इजाज़त नहीं... मगर ये शहज़ादी कम-उम्री और ना-समझी में इस बात को अहमियत दे सकी और दुनिया में गई। इसलिए इसको बंदरिया बना दिया गया ताकि ये कभी परिस्तान वापिस जा सके।”

    “मगर अब क्या होगा... इस जलन का कोई ईलाज नहीं है क्या?”

    “इलाज तो है। इसी पेड़ के फल को पीस कर अगर ज़ख़्मों पर लगाया जाये तो ठीक हो सकती है मगर दुनिया वाले महंगी दवाएं तो ख़रीद लेते हैं पेड़-पौदों की क़द्र नहीं करते, जिनमें हर मर्ज़ की दवा है।” शहज़ादे ने चेहरा ऊपर उठाया और चिड़ियों का शुक्रिया अदा किया।

    पेड़ के फल चुन कर महल में वापिस गया और नौकरों की फ़ौज होते हुए भी अपने हाथों से वो पीस कर मरहम तैयार किया और जाकर अपनी दुल्हन के ज़ख़्मों पर लगाया। हैरत-अंगेज़ तरीक़े से ज़ख़्म ठीक होने लगे।

    दो ही दिन में वो अच्छी हो गई मगर बहुत ख़ामोश थी तीसरी शाम जब शहज़ादा उसकी मसहरी के क़रीब कुरसी पर बैठा था, दरवाज़ा खुला और परिस्तान के राजा और रानी अंदर गए... कमरा उनके नूर से दमकने लगा।

    शहज़ादी जल्दी से उठी और उनके क़दमों में बैठ कर रोने लगी और माफ़ी माँगने लगी। राजा ने उसको उठा कर गले से लगा लिया। और बोले...

    “बेटी! तुमने बहुत तकलीफ़ें उठा लीं। अब तुम्हारी ख़ता-मु'आफ़ हो गई है।”

    रानी ने भी बेटी को गले लगाया और शहज़ादे के सर पर हाथ फेरा...

    परिस्तान के राजा ने शहज़ादे को दुआएं दीं और कहा कि अगर वो चाहे तो परिस्तान चले और वहीं ज़िंदगी गुज़ारे उसे कोई तकलीफ़ नहीं होगी। मगर शहज़ादे ने सहूलत से इन्कार कर दिया और कहा वो यहीं इसी मुल्क में रह कर अपने वालिदैन की ख़िदमत करना चाहता है।

    परिस्तान के राजा उसकी इस बात से बहुत ख़ुश हुए। और परिस्तान के ढेरों सामान से घर भर दिया।

    और राजा-रानी परिस्तान वापिस चले गए। शहज़ादा और उसकी दुल्हन हंसी-ख़ुशी ज़िंदगी गुज़ारने लगे।

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