Quiz A collection of interesting questions related to Urdu poetry, prose and literary history. Play Rekhta Quiz and check your knowledge about Urdu!
लोकप्रिय विषयों और शायरों के चुनिन्दा 20 शेर
उर्दू का पहला ऑनलाइन क्रासवर्ड पज़ल। भाषा और साहित्य से संबंधित दिलचस्प पहेलियाँ हल कीजिए और अपनी मालूमात में इज़ाफ़ा कीजिए।
पहेली हल कीजिएशब्दार्थ
हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता
अगर मर मर के ज़िंदा कोहकन होता तो क्या होता
"फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता" अफ़सर इलाहाबादी की ग़ज़ल से
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एक कहावत है "हाथ कंगन को आरसी क्या"। इसका मतलब तो बाद में समझेंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि आरसी बड़ी सी अंगूठी होती थी जो पिछले ज़माने में औरतें अपने हाथ के अंगूठे में पहना करती थीं। उसमें नगों के बीच एक गोल आईना लगा होता था। औरतें उसमें देख कर अपना सिंगार दुरुस्त किया करती थीं।
आरसी पर बहुत से शे'र कहे गए हैं:
आईना सामने न सही आरसी तो है
तुम अपने मुस्कुराने का अंदाज़ देखना
"हाथ कंगन को आरसी क्या", इसका मतलब है कि हाथ में पहने हुए कंगन को देखने के लिए आरसी की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वह तो नज़रों के सामने ही है। यह कहावत ऐसे मौक़े पर कही जाती है जब कोई बात स्पष्ट और बिल्कुल सामने की हो,जिसको बयान करने की ज़रूरत ही न हो।
यह कहावत भी बहुत मशहूर है:
"हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या।"
शादियों में एक रस्म भी होती है जो "आरसी मुस्हफ़" कहलाती है, जिसमें दूल्हा और दुल्हन को आमने सामने बिठाकर उनके सर पर दुशाला या दुपट्टा डाल दिया जाता है और बीच में आईना रख देते हैं। दोनों एक दूसरे की शक्ल क़ुरआन की एक सूरा (वाक्य) पढ़ कर देखते हैं।मुस्हफ़ क़ुरआन शरीफ़ को कहते हैं।
बी आर चोपड़ा ने अपने मशहूर टीवी सीरियल महाभारत का स्क्रिप्ट राही मासूम रज़ा से लिखने को कहा था तो पहले तो उन्होंने इन्कार कर दिया था। जब अगले दिन यह ख़बर अख़बारों में प्रकाशित हुई तो हज़ारों लोगों ने बी आर चोपड़ा को ख़त लिखा कि क्या उन्हें महाभारत लिखवाने के लिए एक मुसलमान ही मिला है। चोपड़ा जी ने उन पत्रों को राही साहब को भेज दिया।उनको पढ़ कर राही साहब ने कहा कि अब वह ही महाभारत लिखेंगे, क्योंकि वह गंगा के बेटे हैं। राही कहा करते थे कि मेरी तीन माएं हैं, एक मुझे जन्म देने वाली, दूसरी गंगा नदी और तीसरी मुझे शिक्षा देने वाली (स्कूल)।
राही मासूम रज़ा ने टीवी सीरियल महाभारत लिखा तो उसका स्क्रिप्ट और संवाद बहुत पसंद किए गए। उनके घर भी प्रशंसकों के पत्रों के ढेर लग गए। लोगों ने तारीफ़ें करते हुए ख़ूब दुआएं दीं। उनके पास पत्रों के कई गट्ठर बन गए लेकिन एक बहुत छोटा सा बंडल उनकी मेज़ के किनारे अलग पड़ा था। ये वो पत्र थे जिनमें उन्हें बुरा कहा गया था। कुछ हिंदू इस बात पर नाराज़ थे कि उन्होंने मुसलमान हो कर महाभारत लिखने की हिम्मत कैसे की और कुछ मुसलमान उनसे इसलिए नाराज़ थे कि उन्होंने हिंदुओं की किताब क्यों लिखी। राही ने कहा यह छोटा बंडल अस्ल में मुझे हौसला देता है कि मुल्क में बुरे लोग कितने कम हैं।
अल्लामा इक़बाल अपने उस्तादों का कितना सम्मान करते थे। 1923 में अंग्रेज़ सरकार ने 'सर' की उपाधि देने का फ़ैसला किया लेकिन उन्होंने कहा कि वह 'सर' का ख़िताब उस वक्त क़बूल करेंगे जब उनके बचपन के उस्ताद मौलवी मीर हसन को शम्स उल उलमा का ख़िताब दिया जाए। इक़बाल ने अपनी आरंभिक शिक्षा उन्हीं से प्राप्त की थी। सरकार ने उन से कहा कि इतनी बड़ी उपाधि मौलवी मीर हसन को कैसे दी जा सकती है, क्या उनकी कोई प्रसिद्ध पुस्तक या रचना है जिस पर उन्हें यह सम्मान दिया जाए? अल्लामा इक़बाल ने जवाब दिया कि मैं उनकी जीती-जागती किताब और रचना आप के सामने हूं।
अंग्रेज़ सरकार ने मौलवी मीर हसन को शम्स उल उलमा का ख़िताब दिया।
इक़बाल ने अपनी शायरी के आरंभिक दौर में मिर्ज़ा दाग़ देहलवी से कुछ समय तक अशुद्धियां ठीक कराई थीं हालांकि उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई केवल पत्राचार होता था।
थोड़े ही अरसे बाद दाग़ ने इक़बाल को लिख दिया था कि अब आपके कलाम में संशोधन की गुंजाइश नहीं है। दाग़ के देहांत पर अल्लामा इक़बाल ने एक मर्सिया लिखा जिसका हर शे'र मोहब्बत और श्रद्धा में डूबा हुआ है।
अश्क के दाने ज़मीन ए शे'र में बोता हूं मैं
तू भी रो ऐ ख़ाक ए दिल दाग़ को रोता हूं मैं
''सुरीली बाँसुरी'' आरज़ू लखनवी का मशहूर काव्य संग्रह है। इस किताब की ख़ास बात ये है कि इस में अरबी फ़ारसी शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ है। ख़ालिस उर्दू और हिंदुस्तानी ज़बान में शेर कहे गए हैं। जैसे
खिलना कहीं छुपा भी है चाहत के फूल का
ली घर में साँस और गली तक महक गई
जिगर मुरादाबादी के स्वभाव में विनम्रता थी। ज़िंदगी के अधिकतर दिन मुरादाबाद,आगरा और फिर गोंडा में गुज़ारे। मुशायरों के सिलसिले में पूरे हिन्दुस्तान का दौरा किया और अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय शायर रहे। कहा जाता है कि उस वक्त मुशायरों में उनका मानदेय 500/- रुपए होता था। इन सब के बावजूद उनका दाम्पत्य जीवन बहुत बिखरा हुआ था। मदिरापान और आवारगी की अधिकता से उनकी पत्नी बहुत नाराज़ होती थीं। आख़िरकार असग़र गोंडवी के मशवरे पर अपनी बीवी नसीम को तलाक़ दे दी और फिर असग़र गोंडवी ने उनसे शादी कर ली।
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