Quiz A collection of interesting questions related to Urdu poetry, prose and literary history. Play Rekhta Quiz and check your knowledge about Urdu!
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
लोकप्रिय विषयों और शायरों के चुनिन्दा 20 शेर
उर्दू का पहला ऑनलाइन क्रासवर्ड पज़ल। भाषा और साहित्य से संबंधित दिलचस्प पहेलियाँ हल कीजिए और अपनी मालूमात में इज़ाफ़ा कीजिए।
पहेली हल कीजिएशब्दार्थ
आफ़रीनश के हफ़्ते में छे रोज़ तक एक तस्वीर पैहम बनाई गई
दिन ज़िया-साज़ हाथों से ज़ाहिर हुआ और मुसव्विर की कारीगरी रात है
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एक कहावत है "हाथ कंगन को आरसी क्या"। इसका मतलब तो बाद में समझेंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि आरसी बड़ी सी अंगूठी होती थी जो पिछले ज़माने में औरतें अपने हाथ के अंगूठे में पहना करती थीं। उसमें नगों के बीच एक गोल आईना लगा होता था। औरतें उसमें देख कर अपना सिंगार दुरुस्त किया करती थीं।
आरसी पर बहुत से शे'र कहे गए हैं:
आईना सामने न सही आरसी तो है
तुम अपने मुस्कुराने का अंदाज़ देखना
"हाथ कंगन को आरसी क्या", इसका मतलब है कि हाथ में पहने हुए कंगन को देखने के लिए आरसी की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वह तो नज़रों के सामने ही है। यह कहावत ऐसे मौक़े पर कही जाती है जब कोई बात स्पष्ट और बिल्कुल सामने की हो,जिसको बयान करने की ज़रूरत ही न हो।
यह कहावत भी बहुत मशहूर है:
"हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या।"
शादियों में एक रस्म भी होती है जो "आरसी मुस्हफ़" कहलाती है, जिसमें दूल्हा और दुल्हन को आमने सामने बिठाकर उनके सर पर दुशाला या दुपट्टा डाल दिया जाता है और बीच में आईना रख देते हैं। दोनों एक दूसरे की शक्ल क़ुरआन की एक सूरा (वाक्य) पढ़ कर देखते हैं।मुस्हफ़ क़ुरआन शरीफ़ को कहते हैं।
परवीन शाकिर ने सोलह साल की उम्र से शायरी शुरू कर दी थी। पहले उन्होंने 'बीना' तख़ल्लुस अपनाया था। क्या आप जानते हैं कि उनका निक नेम क्या था?
परवीन ने मशहूर आलोचक नज़ीर सिद्दीक़ी के नाम अपने एक ख़त में लिखा था:
"पारो मेरा निक नेम है और पारा भी, इस पारो को आप शहपारा या महपारा क़िस्म की चीज़ न समझिएगा बल्कि यहां पारा असली साइंसी मायने में इस्तेमाल हुआ है। बचपन में इतनी शरीर हुआ करती थी कि मेरा पारे जैसा स्वभाव देखते हुए घर वालों ने मुझे पारा कहना शुरू कर दिया। अब शरारत तो ख़त्म हो गई लेकिन निक नेम रह गया। कुछ 'पारा' कहते हैं कुछ 'पारो' कहते हैं।"
परवीन शाकिर के देहांत के बाद सन् 1997 में ये पत्र "परवीन शाकिर के ख़ुतूत नज़ीर सिद्दीक़ी के नाम" से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए। नज़ीर सिद्दीक़ी ने इस किताब की भूमिका में लिखा है, "परवीन शाकिर से मेरे संबंध जनवरी 1978 से शुरू हो कर कोई सवा साल तक रहे, इस बीच उनके पच्चीस छब्बीस ख़त आए हैं। ये संबंध जहां तक चल सके अच्छे ही चले, लेकिन जब ख़त्म होने पर आए तो अचानक ख़त्म हो गए।"
ये मुहावरा आपने ज़रूर सुना होगा
"धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का" और ये भी सोचते होंगे कि कुत्ते और धोबी का क्या रिश्ता है और इस मुहावरे के पीछे कौन सी कहानी छुपी है।
लेकिन इस मुहावरे में कुत्ता यानी डॉग बिला वज्ह ही आ गया। दरअस्ल मुहावरा है "धोबी का कत्ता न घर का न घाट का"
अब आप कहेंगे कि "कत्ता" के क्या अर्थ हैं।
"कत्ता" उस मोटे से डंडे को कहते हैं जिससे पीट-पीट कर धोबी घाट पर कपड़े धोया करते थे। जिसको कत्का भी कहते हैं। अब धोबी के लिए रोज़ घाट से घर जाते वक़्त ये वज़्नी डंडा साथ ले जाना भी मुश्किल और उसे घाट पर छोड़ कर जाना भी ठीक नहीं था। इसलिए धोबी वो कत्का रास्ते में किसी मुनासिब जगह छुपा दिया करते और अगले दिन निकाल कर फिर इस्तिमाल कर लिया करते।
अब न जाने धोबी का "कत्ता" कैसे और कब कुत्ता बन कर इस मुहावरे में आ गया।
शब्द 'ग़रीब' के उर्दू में कितने मायने हैं। उर्दू और हिंदी में आम तौर पर इसका मतलब है मुफ़लिस लेकिन दाग़ ने इसे मिसकीन के मायने में भी अपने इस शे'र में किस तरह बांधा है:
पूछो जनाब दाग़ की हमसे शरारतें
क्या सर झुकाए बैठे हैं हज़रत ग़रीब से
अरबी में इसका अर्थ है अजीब या अनोखा जिसकी जड़ है तीन अक्षरीय शब्द अजब। अजीब ओ ग़रीब की तरकीब भी उर्दू में जानी पहचानी है। म्यूज़ियम को हम अजायबघर भी कहने लगे। लेकिन फ़ारसी में इसके मायने हैं अजनबी या परदेसी। 'ग़रीब उल वतन' यानी परदेसी, मुसाफ़िर, बेघरा उर्दू गद्य-पद्य में बहुत आम है। हफ़ीज़ जौनपुरी का यह शे'र बहुत मशहूर है:
बैठ जाता हूं जहां छांव घनी होती है
हाय क्या चीज़ ग़रीब उल वतनी होती है
उर्दू ने अरबी और फ़ारसी के बहुत से शब्दों को अपनाया है लेकिन वह कुछ अलग मायने में इस्तेमाल होते हैं, उनमें से एक शब्द है "लतीफ़ा"जिसका उर्दू में अर्थ है हंसाने वाली कोई छोटी सी कहानी या चुटकुला, जबकि अरबी में इसके मायने हैं नाज़ुक और उम्दा चीज़। अरब मुल्कों में लड़कियों के नाम लतीफ़ा होते हैं। ललित कला के लिए उर्दू में फ़ुनून ए लतीफ़ा शब्द का प्रयोग किया जाता है। लतीफ़ा का संबंध शब्द लुत्फ़ से है जो उर्दू में कई रूप दिखाता है। इसके मायने आनंद, अनुकंपा भी हैं। अमीर मीनाई का मशहूर शे'र है:
लुत्फ़ आने लगा जफ़ाओं में
वो कहीं मेहरबां न हो जाए
और हफ़ीज़ जालंधरी कहते हैं:
हम से ये बार ए लुत्फ़ उठाया न जाएगा
एहसां ये कीजिए कि ये एहसां न कीजिए
महान उर्दू शायर एवं पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' के अतिरिक्त 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीत की रचना की
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
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