aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
آرزو لکھنوی، ایک ہشت پہلو شخصیت تھے۔انھوں نے شاعری کی تقریبا ہر صنف سخن میں طبع آزمائی کی ہے۔اس کے علاوہ نثر نگاری پر بھی قدرت حاصل تھی۔اس کے علاوہ انھوں نے ڈرامے بھی لکھے ہیں۔آرزو ایک قادرالکلام شاعر تھے۔ندرت بیاں اور خیال کی سادگی ان کے کلام کی خصوصیت ہے۔انھوں نے اپنے کلام میں ہندی کے نرم دھیمے اور رسیلے الفاظ کثرت سے استعمال کیے ہیں ان کے کلام کے تین مجموعے "فعان آرزو، جہان آرزو، اور سریلی " منظر عام پر آچکے ہیں۔پیش نظر ان کے کلام کا انتخاب ہے۔
लखनऊ की ख़ास पारम्परिक ढंग की शायरी के लिए आरज़ू लखनवी का नाम बहुत अहम है. उनकी शायरी में ज़बान का इस्तेमाल एक बहुत ही अलग ढंग से हुआ है. फ़ारसी शब्दावलियों के विपरीत उन्होंने स्थानीय शब्दों और युक्तियों को अपनी शायरी में प्रयोग किया. आरज़ू का नाम अनवर हुसैन था ,आरज़ू तखल्लुस करते थे.17 फ़रवरी 1873 को लखनऊ में पैदा हुए. उनके पिता मिर्ज़ा ज़ाकिर हुसैन यास लखनवी की गिनती भी अपने वक़्त के मशहूर शायरों में होती थी. वह जलाल लखनवी के ख़ास शागिर्दों में थे. आरज़ू ने अरबी व फ़ारसी की शिक्षा अपने समय के विद्वानों से प्राप्त की. मौलाना आक़ा हसन मुजतहिद उनके उस्ताद थे. आरज़ू बारह साल की उम्र से ही शेर कहने लगे थे और पंद्रह साल की उम्र में उस्ताद हकीम मीर ज़ामिन अली जलाल लखनवी के शागिर्दों में शामिल हो गये. आरज़ू समस्त विधाओं में शायरी की लेकिन ग़ज़ल, गीत और मर्सिये की वजह से उन्हें ख़ूब शोहरत हासिल हुई. आरज़ू को छंदशास्त्र का अच्छा ज्ञान था. आरज़ू की उस्तादी उनके वक़्त में ही प्रमाणित हो गयी थी, उनके शागिर्दों की संख्या काफ़ी थी. विभाजन के बाद वह पाकिस्तान प्रवास कर गये और 16 अप्रैल 1951 को कराची में देहांत हुआ.
प्रकाशन; फ़ुगाने आरज़ू, जहाने आरज़ू, सुरीली बाँसुरी, निशाने आरज़ू ,सहीफ़ाए इल्हाम ,ख़म्सये मुतहैयरा ,दुर्दाना ,अर्ब’ए अ’नासिर ,निज़ामे उर्दू,मिज़ानुलहुरूफ़.