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अख़्तर शीरानी

1905 - 1948 | लाहौर, पाकिस्तान

सबसे लोकप्रिय उर्दू शायरों में से एक। गहरी रूमानी शायरी के लिए प्रसिद्ध

सबसे लोकप्रिय उर्दू शायरों में से एक। गहरी रूमानी शायरी के लिए प्रसिद्ध

अख़्तर शीरानी

ग़ज़ल 54

नज़्म 34

अशआर 57

काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें

फूलों का क्या जो साँस की गर्मी सह सकें

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ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना

ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते

उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है

दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है

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इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा

अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता

तुम होते सही ज़िक्र तुम्हारा होता

हास्य शायरी 1

 

क़ितआ 1

 

रुबाई 3

 

पुस्तकें 89

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इक़बाल बानो

Ai ishq hamen barbad na kar

मलिका पुखराज

Ai Ishq Humhein Barbad na Kar

नय्यरा नूर

Bhulaoge bahut lekin tumhen ham yaad

मुन्नी बेगम

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर नय्यरा नूर

क्या कह गई किसी की नज़र कुछ न पूछिए

हबीब वली मोहम्मद

यारो कू-ए-यार की बातें करें

ख़ुर्शीद बेगम

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर नय्यरा नूर

ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाला है बता नासिर जहाँ

ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाला है बता आबिदा परवीन

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता

इक़बाल बानो

क्या कह गई किसी की नज़र कुछ न पूछिए

हबीब वली मोहम्मद

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

मलिका पुखराज

मिरी शाम-ए-ग़म को वो बहला रहे हैं

मलिका पुखराज

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

अख़्तर शीरानी

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

फ़रीदा ख़ानम

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

अख़्तर शीरानी

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

ग़ुलाम अली

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

अख़्तर शीरानी

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

ताहिरा सैयद

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

मलिका पुखराज

ऑडियो 10

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं

मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!

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