ओवेस अहमद दौराँ
ग़ज़ल 13
नज़्म 9
अशआर 12
शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
पहलू में दिल की तरह धड़कने लगी है शाम
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कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले
कुछ लोग हैं हम जैसे कुछ लोग हैं तुम जैसे
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ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!
हर शाख़ है तलवार यहाँ, जागते रहना
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