गूँगी मुहब्बत
स्टोरीलाइन
एक गूंगी लड़की की गूंगी मोहब्बत की कहानी। ज्योति आर्ट की शौक़ीन इंदिरा की ख़ादिमा है। एक आर्ट की नुमाइश के दौरान इंदिरा की मुलाकात मोहन से होती है और वह दोनों शादी कर लेते हैं। एक रोज़ जब इंदिरा को पता चलता है कि उसकी ख़ादिमा ज्योति भी मोहन से मोहब्बत करती है तो वह उसे छोड़कर चली जाती है।
वो दोनों जवान थीं और ज़ाहिर है कि जवानी की बहार-आफ़रीनी हर निस्वानी पैकर के ख़द्द-ओ-ख़ाल में एक ख़ास शगुफ़्तगी और एक ख़ास दिल-आवेज़ी पैदा कर देती है... चुनाँचे वो दोनों हसीन भी थीं। दोनों के क़द भी क़रीबन-क़रीबन यकसाँ थे। दोनों की उ'म्रों में भी कोई ख़ास फ़र्क़ न था। एक की उ'म्र सोलह साल के क़रीब होगी और दूसरी की सत्रह या अठारह के लगभग।
मगर इन चीज़ों के बा-वजूद दोनों में बहुत बड़ा फ़र्क़ था। एक को फ़ितरतन हक़ हासिल था कि वो ख़ूब हँसे और हर वक़्त हँसती रहे और दूसरी दुनिया में सिर्फ़ इस ग़रज़ से पैदा हुई थी कि वो ख़्वाह हँसे या रोए लेकिन दूसरों को ज़रूर हँसाए। एक इशारों में अहकाम सादर करती थी और दूसरी उन अहकाम की बे-चून-ओ-चरा ता'मील कर देती थी और सबसे बढ़कर ये एक की ज़बान उसके मुँह में थी और दूसरी की ज़बान उसके हाथों के इशारों में।
एक का नाम था इंदिरा... काग़ज़ की एक मशहूर फ़र्म के वाहिद मालिक सेठ बद्रीप्रशाद की इकलौती बेटी... दूसरी का नाम था ज्योती... लेकिन ये नाम एक शख़्स भी न जानता था। आख़िर एक गूँगी लड़की का नाम मा'लूम करने की ज़रूरत भी क्या है? जिस तरह हर शख़्स गूँगी के नाम से वाक़िफ़ था। उसी तरह वो ये भी नहीं जानता था <