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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अतीक़ुल्लाह

1941 | दिल्ली, भारत

ख्यातिप्राप्त आलोचक और शायर, दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे

ख्यातिप्राप्त आलोचक और शायर, दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे

अतीक़ुल्लाह

ग़ज़ल 37

नज़्म 6

अशआर 28

आइना आइना तैरता कोई अक्स

और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है

इस गली से उस गली तक दौड़ता रहता हूँ मैं

रात उतनी ही मयस्सर है सफ़र उतना ही है

दिन के हंगामे जिला देते हैं मुझ को वर्ना

सुब्ह से पहले कई मर्तबा मर जाता हूँ

रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए

आप अपनी ज़ात से उस को बहुत इंकार था

हम ज़मीं की तरफ़ जब आए थे

आसमानों में रह गया था कुछ

लेख 1

 

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