Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Irfan Siddiqi's Photo'

इरफ़ान सिद्दीक़ी

1939 - 2004 | लखनऊ, भारत

सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक शायरों में शामिल, अपने नव-क्लासिकी लहजे के लिए विख्यात।

सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक शायरों में शामिल, अपने नव-क्लासिकी लहजे के लिए विख्यात।

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 138

अशआर 96

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए

बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है

उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है

रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़

कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है

तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद

शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो

  • शेयर कीजिए

होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है

रंज कम सहता है एलान बहुत करता है

पुस्तकें 18

वीडियो 9

This video is playing from YouTube

वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ज़ौक़-ए-परवाज़ को बेकार नहीं मानता मैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

शाख़ के बा'द ज़मीं से भी जुदा होना है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

सख़्त हैं मरहला-ए-रिज़्क़ भी हम जानते हैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

सर-ए-तस्लीम है ख़म इज़्न-ए-उक़ूबत के बग़ैर

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हल्क़ा-ए-बे-तलबाँ रँज-ए-गिराँ-बारी क्या

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

जब ये आलम हो तो लिखिए लब-ओ-रुख़्सार पे ख़ाक

इरफ़ान सिद्दीक़ी

धनक से फूल से बर्ग-ए-हिना से कुछ नहीं होता

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हल्क़ा-ए-बे-तलबाँ रँज-ए-गिराँ-बारी क्या

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ऑडियो 24

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

उन्हीं की शह से उन्हें मात करता रहता हूँ

कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया

Recitation

संबंधित ब्लॉग

 

संबंधित लेखक

"लखनऊ" के और लेखक

Recitation

Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

बोलिए