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इरफ़ान सिद्दीक़ी

1939 - 2004 | लखनऊ, भारत

सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक शायरों में शामिल, अपने नव-क्लासिकी लहजे के लिए विख्यात।

सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक शायरों में शामिल, अपने नव-क्लासिकी लहजे के लिए विख्यात।

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 137

अशआर 96

इश्क़ क्या कार-ए-हवस भी कोई आसान नहीं

ख़ैर से पहले इसी काम के क़ाबिल हो जाओ

ख़िराज माँग रही है वो शाह-बानू-ए-शहर

सो हम भी हदिया-ए-दस्त-ए-तलब गुज़ारते हैं

मौला, फिर मिरे सहरा से बिन बरसे बादल लौट गए

ख़ैर शिकायत कोई नहीं है अगले बरस बरसा देना

सुना था मैं ने कि फ़ितरत ख़ला की दुश्मन है

सो वो बदन मिरी तन्हाइयों को पाट गया

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हम ने मुद्दत से उलट रक्खा है कासा अपना

दस्त-ए-दादार तिरे दिरहम-ओ-दीनार पे ख़ाक

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वीडियो 12

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

सर-ए-तस्लीम है ख़म इज़्न-ए-उक़ूबत के बग़ैर

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हल्क़ा-ए-बे-तलबाँ रँज-ए-गिराँ-बारी क्या

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

जब ये आलम हो तो लिखिए लब-ओ-रुख़्सार पे ख़ाक

इरफ़ान सिद्दीक़ी

धनक से फूल से बर्ग-ए-हिना से कुछ नहीं होता

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हल्क़ा-ए-बे-तलबाँ रँज-ए-गिराँ-बारी क्या

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ऑडियो 24

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

उन्हीं की शह से उन्हें मात करता रहता हूँ

कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया

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