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मिर्ज़ा अज़ीम बेग़ चुग़ताई की कहानियाँ
अंगूठी की मुसीबत
(1) मैंने शाहिदा से कहा, "तो मैं जा के अब कुंजियाँ ले आऊँ।" शाहिदा ने कहा, "आख़िर तू क्यों अपनी शादी के लिए इतनी तड़प रही है? अच्छा जा।" मैं हँसती हुई चली गई। कमरे से बाहर निकली। दोपहर का वक़्त था और सन्नाटा छाया हुआ था। अम्माँ जान अपने कमरे में
रुमूज़-ए-ख़ामोशी
मैं चार बजे की गाड़ी से घर वापिस आ रहा था। दस बजे की गाड़ी से एक जगह गया था और चूँकि उसी रोज़ वापिस आना था लिहाज़ा मेरे पास अस्बाब वग़ैरा कुछ ना था। सिर्फ एक स्टेशन रह गया था। गाड़ी रुकी तो मैंने देखा कि एक साहिब सैकिण्ड क्लास के डिब्बे से उतरे। उनका क़द्द-ए-बला
शातिर की बीवी
(1) उम्दा किस्म का सियाह-रंग का चमकदार जूता पहन कर घर से बाहर निकलने का असल लुतफ़ तो जनाब जब है जब मुँह में पान भी हो, तंबाकू के मज़े लेते हुए जूते पर नज़र डालते हुए बेद हिलाते जा रहे हैं। यही सोच कर में जल्दी-जल्दी चलते घर से दौड़ा। जल्दी में पान भी
मिस्री कोर्टशिप
(1) मैंने जो पैरिस से लिखा था वही अब कहता हूँ कि मैं हरगिज़ हरगिज़ इस बात के लिए तैयार नहीं कि बग़ैर देखे-भाले शादी कर लूं, सो अगर आप मेरी शादी करना चाहती हैं तो मुझको अपनी मंसूबा बीवी को ना सिर्फ देख लेने दीजिए बल्कि इस से दो-चार मिनट बातें कर लेने
इक्का
"दस बजे हैं।" लेडी हिम्मत क़दर ने अपनी मोटी सी नाज़ुक कलाई पर नज़र डालते हुए जमाही ली। नवाब हिम्मत क़दर ने अपनी ख़तरनाक मूंछों से दाँत चमका कर कहा। "ग्यारह, साढे़ गया बजे तक तो हम ज़रूर फ़ो... होनच... बिग..." मोटर को एक झटका लगा और तेवरी पर बल डाल कर नवाब
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