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क़ुद्रतुल्लाह शहाब की कहानियाँ
माँ जी
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है, जो अपनी माँ की मौत के बाद उसकी बीती ज़िंदगी के बारे में सोचता है। सादगी पसंद और ख़ूबसूरती की मूरत उसकी माँ, जिसने कभी कोई शौक़ नहीं किया, कभी किसी पर बोझ नहीं बनी और न ही किसी को दुःख दिया। ख़र्चे के लिए रुपये माँगे तो बस ग्यारह पैसे। वह भी मस्जिद के चिराग़ में तेल डलवाने के लिए। एक दिन वह अचानक यूँ ही चली गई... हमेशा हमेशा के लिए।
और आइशा आ गयी
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो विभाजन के समय बम्बई से कराची प्रवास कर जाता है। वहां वह कई काम करता है, लेकिन कोई काम उसे रास नहीं आता। फिर कुछ लोग उसे दलाली करने के लिए कहते हैं, लेकिन अपनी दीनदार बेटी के कारण वह इंकार कर देता है। बेटी की शादी से पहले वह वही सब काम करने लगता है और बहुत अमीर हो जाता है। शादी के एक अर्से के बाद जब उसकी बेटी उससे मिलने आने वाली होती है तो वह उन सब कामों से तौबा कर लेता है।
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बाल-साहित्य1969
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