- पुस्तक सूची 187819
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1962
औषधि909 आंदोलन295 नॉवेल / उपन्यास4601 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी12
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1446
- दोहा64
- महा-काव्य111
- व्याख्या195
- गीत83
- ग़ज़ल1161
- हाइकु12
- हम्द45
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1577
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात686
- माहिया19
- काव्य संग्रह5019
- मर्सिया379
- मसनवी827
- मुसद्दस58
- नात548
- नज़्म1242
- अन्य68
- पहेली16
- क़सीदा188
- क़व्वाली19
- क़ित'अ61
- रुबाई296
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई29
- अनुवाद73
- वासोख़्त26
संपूर्ण
परिचय
ई-पुस्तक202
कहानी233
लेख40
उद्धरण107
लघु कथा29
तंज़-ओ-मज़ाह1
रेखाचित्र24
ड्रामा59
अनुवाद2
वीडियो43
गेलरी 4
ब्लॉग5
अन्य
उपन्यासिका1
पत्र10
सआदत हसन मंटो के लघु कथाएँ
करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए। लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया ताकि क़ानूनी गिरिफ़्त से बचे रहें। एक आदमी को
घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिल कर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालिस रुपये दे कर उसे ख़रीद लिया। रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की ने अपना नाम बताया तो वो भिन्ना गया। “हम से तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की
इस्लाह
“कौन हो तुम?” “तुम कौन हो?” “हरहर महादेव... हरहर महादेव?” “हरहर महादेव?” “सुबूत क्या है?” “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?” “ये कोई सुबूत नहीं?” “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” “हम वेदों को नहीं जानते... सुबूत दो।” “क्या?” “पाएजामा
आँखों पर चर्बी
“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं… पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश कर के इस मस्जिद में काटे हैं। वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है। लेकिन यहाँ सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही नहीं।”
जेली
सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया… सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही। सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई। बर्फ़ और ख़ून वहीं सड़क पर पड़े रहे। एक टाँगा
सॉरी
छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई। इज़ार-बंद कट गया। छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला, “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।”
हैवानियत
बड़ी मुश्किल से मियाँ-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए। गाय बच गई मगर उसका बछड़ा न मिला। मियाँ-बीवी, उनकी
बे-ख़बरी का फ़ायदा
लबलबी दबी... पिस्तौल से झुँझला कर गोली बाहर निकली। खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा होगया। लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी... दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली। सड़क पर माशकी की मशक फटी। औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मशक के पानी
कस्र-ए-नफ़्सी
चलती गाड़ी रोक ली गई। जो दूसरे मज़हब के थे उनको निकाल निकाल कर तलवारों और गोलियों से हलाक कर दिया गया। इससे फ़ारिग़ हो कर गाड़ी के बाक़ी मुसाफ़िरों की हलवे, दूध और फलों से तवाज़ो की गई। गाड़ी चलने से पहले तवाज़ो करने वालों के मुंतज़िम ने मुसाफ़िरों को
मज़दूरी
लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था... 'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौन हमारा।' एक छोटी उम्र का लड़का झोली में पापडों
पठानिस्तान
“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?” “मैं... मैं...” “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?” “मुस्लिमीन।” “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?” “मोहम्मद ख़ान।” “टीक ऐ...जाओ।”
हलाल और झटका
“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी। हौले हौले फेरी और उस को हलाल कर दिया। “ये तुम ने क्या किया?” “क्यूँ?” “उसको हलाल क्यूँ किया?” “मज़ा आता है इस तरह।” “मज़ा आता है के बच्चे, तुझे झटका करना चाहिए था... इस तरह।” और हलाल करने वाले की गर्दन
तक़्सीम
एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक़ मुंतख़ब किया जब उसे उठाने लगा तो वो अपनी जगह से एक इंच भी न हिला। एक शख़्स ने जिसे शायद अपने मतलब की कोई चीज़ मिल ही नहीं रही थी संदूक़ उठाने की कोशिश करने वाले से कहा, “मैं तुम्हारी मदद करूं?” संदूक़ उठाने
क़िस्मत
“कुछ नहीं दोस्त... इतनी मेहनत करने पर सिर्फ़ एक बक्स हाथ लगा था पर इस में भी साला सुअर का गोश्त निकला।”
रिआयत
“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो।” “चलो इसी की मान लो… कपड़े उतार कर हाँक दो एक तरफ़।”
उलहना
“देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।”
हमेशा कि छुट्टी
“पकड़ लो... पकड़ लो... देखो जाने न पाए।” शिकार थोड़ी सी दौड़ धूप के बाद पकड़ लिया गया। जब नेज़े उसके आर पार होने के लिए आगे बढ़े तो उसने लर्ज़ां आवाज़ में गिड़गिड़ा कर कहा, “मुझे न मारो... मुझे न मारो... मैं ता'तीलों में अपने घर जा रहा हूँ।”
तआवुन
चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब किया, “भाईयो, इस मकान में बे-अंदाज़ा दौलत है। बेशुमार
सदक़े उसके
मुजरा ख़त्म हुआ, तमाशाई रुख़्सत हो गए तो उस्तादी जी ने कहा, “सब कुछ लुटा पिटा कर यहां आए थे लेकिन अल्लाह मियां ने चंद दिनों में ही वारे न्यारे कर दिए।”
पेश-बंदी
पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया। दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन कर दिया गया। तीसरा केस रात के बारह बजे लांड्री
इश्तिराकियत
वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया। एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अकेला उड़ाए चला जा रहा था।” अस्बाब के मालिक ने
दावत-ए-अमल
आग लगी तो सारा मोहल्ला जल गया... सिर्फ़ एक दुकान बच गई जिसकी पेशानी पर ये बोर्ड आवेज़ां था... “यहां इमारत-साज़ी का जुमला सामान मिलता है।”
खाद
उसकी ख़ुदकुशी पर उसके एक दोस्त ने कहा, “बहुत ही बेवक़ूफ़ था जी। मैंने लाख समझाया कि देखो अगर तुम्हारे केस काट दिए हैं और तुम्हारी दाढ़ी मूंड दी है तो इसका ये मतलब नहीं कि तुम्हारा धर्म ख़त्म होगया है... रोज़ दही इस्तिमाल करो। वाहे गुरु जी ने चाहा
ख़बरदार
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीट कर बाहर ले आए। कपड़े झाड़ कर वो उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा, “तुम मुझे मार डालो लेकिन ख़बरदार जो मेरे रुपये पैसे को हाथ लगाया।”
सफ़ाई पसंदी
गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए। खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा, “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।” एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया, “जी नहीं।” थोड़ी देर के बाद चार नेज़ा बर्दार
जाएज़ इस्तेमाल
दस राउंड चलाने और तीन आदमियों को ज़ख़्मी करने के बाद पठान भी आख़िर सुर्ख़-रु हो ही गया। एक अफ़रा तफ़री मची थी। लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे। छीना झपटी हो रही थी। मार धाड़ भी जारी थी। पठान अपनी बंदूक़ लिए घुसा और तक़रीबन एक घंटा कुश्ती लड़ने के बाद
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1962
-