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परिचय
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कहानी233
लेख40
उद्धरण107
लघु कथा29
तंज़-ओ-मज़ाह1
रेखाचित्र24
ड्रामा59
अनुवाद2
वीडियो82
गेलरी 4
ब्लॉग5
अन्य
उपन्यासिका1
पत्र10
सआदत हसन मंटो की कहानियाँ
रिश्वत
एक नौजवान के ज़िंदगी के तल्ख़ तज़ुर्बों पर आधारित कहानी है। जब उसने बी. ए पास किया तो उसके बाप का इरादा था कि वह उसे उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजेगा। इसी बीच उसके बाप को जुए की लत लग गई और वह सब कुछ जुए में हारकर मर गया। नौजवान ख़ाली हाथ दुनिया से संघर्ष करने लगा। वह जहाँ भी नौकरी के लिए जाता, हर जगह उससे रिश्वत माँगी जाती। आख़िर में परेशान हो कर उसने अल्लाह को एक ख़त लिखा और उस ख़त के साथ रिश्वत के तौर पर वे तीस रूपये भी डाल दिए जो उसने मज़दूरी कर के कमाए थे। उसका यह ख़त एक अख़बार के एडिटर के पास पहुँच जाता है, जहाँ से उसे दो सौ रूपये माहवार की तनख़्वाह पर नौकरी के लिए बुलावा आ जाता है।
हाफ़िज़ हुसैन दीन
यह तंत्र-मंत्र के सहारे लोगों को ठगने वाले एक ढोंगी पीर की कहानी है। हाफ़िज़ हुसैन दीन आँखों से अंधा था और ज़फ़र शाह के यहाँ आया हुआ था। ज़फ़र से उसका सम्बंध एक जानने वाले के ज़रिए हुआ था। ज़फ़र पीर-औलिया पर बहुत यक़ीन रखता था। इसी वजह से हुसैन दीन ने उसे आर्थिक रूप से ख़ूब लूटा और आख़िर में उसकी मंगेतर को ही लेकर भाग गया।
झुमके
सुनार की उंगलियां झुमकों को ब्रश से पॉलिश कर रही हैं। झुमके चमकने लगते हैं, सुनार के पास ही एक आदमी बैठा है, झुमकों की चमक देख कर उसकी आँखें तमतमा उठती हैं। बड़ी बेताबी से वो अपने हाथ उन झुमकों की तरफ़ बढ़ाता है और सुनार कहता है, “बस अब दे दो मुझे।” सुनार
किताब का ख़ुलासा
यह कहानी एक बाप के अपनी बेटी के साथ नाजायज़ तअल्लुक़़ात पर आधारित है। बिमला की माँ बहुत पहले ही मर गई थी। वह अपने पिता के साथ अकेली रहा करती थी। दिन में वह अनवर के घर उसकी बहन के पास सिलाई-कढ़ाई का काम सीखने आया करती थी। उसे अनवर से मोहब्बत थी, पर वह उसका इज़हार नहीं कर पाती थी। एक बार वह शदीद बीमार हुई और उसने अनवर के घर आना छोड़ दिया। बाद में पता चला कि उसके यहाँ मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था, जो उसी के बाप का था।
तीन में ना तेरह में
यह कहानी पति-पत्नी के बीच होने वाली तकरार पर आधारित है। पत्नी अपने पति से नाराज़़ है और उसके साथ झगड़ा करते हुए वह मुहावरों का इस्तेमाल करती है। पति उसके हर मुहावरे का जवाब देता है और वे दोनों झगड़ते हुए औरत-मर्द के संबंध, शादी और घरेलू ज़रूरियात के बारे में बड़ी दिलचस्प गुफ़्तगू करते जाते हैं।
ख़्वाब-ए-ख़रगोश
सुरय्या हंस रही थी। बेतरह हंस रही थी। उसकी नन्ही सी कमर इसके बाइस दुहरी हो गई थी। उसकी बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई और कहा, “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियों का बक्स उठाला। पर ऐसे कि अम्मी जान को ख़बर न हो।” सुरय्या
फाहा
इसमें जवानी के आरम्भ में होने वाली शारीरिक परिवर्तनों से बे-ख़बर एक लड़की की कहानी बयान की गई है। आम खाने से गोपाल के फोड़ा निकल आता है तो वो अपने माँ-बाप से छुप कर अपनी बहन निर्मला की मदद से फोड़े पर फाहा रखता है। निर्मला इस पूरी प्रक्रिया को बहुत ध्यान और दिलचस्पी से देखती है और गोपाल के जाने के बाद अपने सीने पर फाहा रखती है।
सुर्मा
फ़हमीदा को सुर्मा लगाने का बेहद शौक़ था। शादी के बाद शौहर के टोकने पर उसने सुर्मा लगाना छोड़ दिया। फिर उसने नवजात बच्चे के सुर्मा लगाना शुरू किया लेकिन वो डबल निमोनिया से मर गया। एक दिन जब फ़हमीदा के शौहर ने उसे जगाने की कोशिश की तो वो मुर्दा पड़ी थी और उसके पहलू में एक गुड़िया थी जिसकी आँखें सुर्मे से भरी हुई थीं।
शो शो
घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के-लड़कियों, बच्चे-बच्चियों और औरतों से भरे थे और वो शोर बरपा हो रहा था कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई न देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने के लिए बिलबिला रहे हैं तो दूसरे कमरे में छोटी छोटी लड़कियां
महमूदा
औरत जब बुरी होती है वह इसीलिए बुरी नहीं होती कि वह बुरी है। बल्कि वह इसलिए बुरी होती है क्योंकि मर्द उसे बुरा बनाते हैं। बड़ी-बड़ी आँखों वाली महमूदा एक बहुत खू़बसूरत लड़की थी। उसकी शादी भी बड़ी धूमधाम से हुई थी लेकिन अपने शौहर के नकारापन की वजह से वह इस धँधे में उतर जाती है।
ढारस
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसे शराब पीने के बाद औरत की ज़रूरत होती है। उस दिन वह अपने एक हिंदू दोस्त की बारात में गया हुआ था। वहाँ भी पीने-पिलाने का दौर चला। किसी ने भी उसकी इस आदत को अहमियत नहीं दी। वह पीने के बाद छत पर चला गया। वहाँ वह अंधेरे में लेटी एक अनजान लड़की के साथ जाकर सो गया। बाद में पता चला कि वह दुल्हन की विधवा बहन थी। उसकी इस हरकत पर वह लगातार रो रही थी। लोगों के समझाने-बुझाने पर वह मान जाती है और किसी से कुछ नहीं कहती।
वो ख़त जो पोस्ट न किये गए
ये कहानी दस मुख़्तसर पत्रों का संग्रह है जो अलग-अलग अफ़राद को तंज़िया और नीम-मज़ाहिया अंदाज़ में लिखे गए हैं। पत्र लिखने वाला जो एक औरत है अपने जिस प्रिय को पत्र लिख रही है, की रोज़मर्रा की छोटी-छोटी ख़ामियों और कमियों की निशान-देही करती है।
बस स्टैंड
मर्द के दोहरे रवैय्ये और औरत की मासूमियत को इस कहानी में बयान किया गया है। सलमा एक अविवाहित लड़की है और शाहिदा उसकी शादी-शुदा सहेली। एक दिन सलमा शाहिदा के घर जाती है तो शाहिदा अपने शौहर की शराफ़त और अमीरी की प्रशंसा बढ़ा-चढ़ा कर करती है। जब सलमा अपने घर वापस जाती है तो रास्ते में उसे एक आदमी ज़बरदस्ती अपनी कार में बिठाता है और अपनी जिन्सी भूख मिटाता है। संयोग से सलमा उस आदमी का बटुवा खोल कर देखती है तो पता चलता है कि वो शाहिदा का शौहर है।
फूलों की साज़िश
विभिन्न हीलों और बहानों से एकता व अखंडता को तोड़ने वाले तत्वों को अलंकारिक प्रतिमान के रूप में रेखांकित किया गया है। एक दिन गुलाब माली के विरुद्ध प्रतिरोध की आवाज़ उठाता है और सारे फूलों को अपनी आज़ादी और अधिकारों की तरफ़ ध्यानाकर्षित करता है लेकिन चमेली अपनी नर्म और कोमल बातों से गुलाब को अपनी तरफ़ आकर्षित करके असल उद्देश्य से ध्यान भटका देती है। सुबह माली आकर दोनों को तोड़ लेता है।
ख़ालिद मियां
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपने बेटे की मौत के वहम में मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है। ख़ालिद मियाँ एक बहुत तंदुरुस्त और ख़ूबसूरत बच्चा था। कुछ ही दिनों में वह एक साल का होने वाला था, पर उसकी सालगिरह से दो दिन पहले ही उसके बाप मुम्ताज़ को यह संदेह होने लगा था कि ख़ालिद एक साल का होने से पहले ही मर जाएगा। हालाँकि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ था और हँस-खेल रहा था। मगर जैसे-जैसे वक़्त बीतता जाता था, मुमताज़ का संदेह और भी गहरा होता जाता था।
बासित
मुख़्तलिफ़ वजहों से बासित उस लड़की से शादी के लिए राज़ी नहीं था जिस लड़की से उसकी माँ उसकी शादी कराना चाहती थी, अंततः उसने हथियार डाल दिए। शादी के बाद बासित की बीवी सईदा हर वक़्त खौफ़ज़दा और गुम-सुम सी रहती थी। इस बात को शुरू में बासित ने नये माहौल और नये घर की झिझक समझा था, लेकिन एक दिन गु़सलखाने में जब सईदा का हमल ज़ाए‘अ हुआ तब बासित को सही सूरत-ए-हाल का अंदाज़ा हुआ। बासित ने सईदा को माफ़ कर दिया लेकिन बासित की माँ अधूरा बच्चा देखकर बर्दाश्त न कर सकी और दुनिया से चल बसी।
मिस्टर मोईनुद्दीन
सामाजिक रसूख़ और साख के गिर्द घूमती यह कहानी मोईन-नामी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर आधारित है। मोईन ने ज़ोहरा से उसके माँ-बाप के ख़िलाफ़ जाकर शादी की थी और फिर कराची में आ बसा था। कराची में उसकी बीवी का एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ सम्बंध हो जाता है। मोईन इस बारे में जानता है लेकिन अपनी मोहब्बत और सामाजिक साख के कारण वह बीवी को तलाक नहीं देता और उसे प्रेमी के साथ रहने की अनुमति दे देता है। कुछ अरसे बाद जब प्रेमी की मौत हो जाती है तो मोईन भी उसे तलाक दे देता है।
मन्तर
बच्चों के मनोविज्ञान, उनकी शरारत और प्रतिभा पर आधारित कहानी है। एक वकील साहब का बेटा बहुत ही दुष्ट था। वकील साहब के सारे क़ानूनी दावपेंच उसके सामने धरे के धरे रह जाते थे। ट्रेन के सफ़र में जिस तरह मंत्र पढ़ कर उन्होंने अपने बेटे की ग़ायब टोपी पुनः प्राप्त कर ली थी, उसी तरह उनके बेटे ने मंत्र पढ़ कर उनके अदालती काग़ज़ात भी वापस मंगा लिए थे।
शाह दूले का चूहा
मज़हब के नाम पर गोरख धंधा करने वालों की कहानी है। शाह दूले के मज़ार के बारे में यह अक़ीदा राइज कर दिया गया था कि यहाँ मन्नत मानने के बाद अगर बच्चा होता है तो पहला बच्चा शाह दूले का चूहा है और उस बच्चे को मज़ार पर छोड़ना ज़रूरी है। सलीमा को अपना पहला बच्चा मुजीब इसी अक़ीदे से मज़ार पर छोड़ना पड़ा, लेकिन वह उसका ग़म अपने सीने से लगाये रही। एक मुद्दत के बाद जब मुजीब उसके दरवाज़े पर शाह दूल्हे का चूहा बन कर आता है तो सलीमा उसे तुरंत पहचान लेती है और तमाशा दिखाने वाले से पाँच सौ के बदले उसे ले लेती है, लेकिन जब वह पैसे देकर वापस अंदर आती है तो मुजीब ग़ायब हो चुका होता है।
आँखें
अतृप्त भावनाओं की कहानी है। आँखों की रोशनी से वंचित हनीफ़ा को वह अस्पताल में देखता है तो उसकी पुरकशिश आँखों पर फ़िदा हो जाता है। हनीफ़ा के रवय्ये से महसूस होता है कि यह अस्पताल उसके लिए बिल्कुल नई जगह है, इसलिए वह उसकी मदद के लिए आगे आता है। उसकी पुरकशिश आँखों की गहराई में डूबे रहने के लिए झूट बोल कर कि उसका घर भी हनीफ़ा के घर के रास्ते में है, वह उसके साथ घर तक जाता है। मंज़िल पर पहुंचने के बाद जब वह तांगे से उतरने के लिए बदरू का सहारा लेती है तब पता चलता है कि यह आँख की रौशनी से वंचित है और फिर...
नया क़ानून
यह एक आज़ादी के दीवाने मंगू कोचवान की कहानी है। मंगू पढ़ा-लिखा नहीं है फिर भी उसे दुनिया भर की जानकारी है, जिन्हें वह अपनी सवारियों से सुनकर मालूमात इक्ट्ठी करता है। एक दिन उसे पता चलता है कि भारत में नया क़ानून आने वाला है, जिससे भारत से अंग्रेज़ राज ख़त्म हो जाएगा। इसी खु़शी में वह क़ानून लागू होने वाली तारीख़ वाले दिन एक अंग्रेज़ के साथ झगड़ा करता है और जेल पहुँच जाता है।
नारा
यह अफ़साना एक निम्न मध्यवर्गीय आदमी के अभिमान को ठेस पहुँचने से होने वाले दर्द को बयान करता है। बीवी की बीमारी और बच्चों के ख़र्च के कारण वह मकान मालिक को पिछले दो महीने का किराया भी नहीं दे पाया था। वह चाहता था कि मालिक उसे एक महीने की और मोहलत दे दे। इस विनती के साथ जब वह मकान मालिक के पास गया तो मालिक ने उसकी बात सुने बिना ही उसे दो गंदी गालियाँ दी। उन गालियों को सुनकर उसे बहुत ठेस पहुँची और वह तरह-तरह के विचारों में गुम शहर के दूसरे सिरे पर जा पहुँचा। वहाँ उसने अपनी पूरी क़ुव्वत से एक 'नारा' लगाया और ख़ुद को हल्का महसूस करने लगा।
दूदा पहलवान
एक नौकर की अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी इस कहानी का विषय है। सलाहू ने अपने लकड़पन के समय से ही दूदे पहलवान को अपने साथ रख लिया था। बाप की मौत के बाद सलाहू खुल गया था और हीरा मंडी की तवायफ़ों के बीच अपनी ज़िंदगी गुज़ारने लगा था। एक तवायफ़ की बेटी पर वह ऐसा आशिक़ हुआ कि उसका दिवाला ही निकल गया। घर को कुर्क होने से बचाने के लिए उसे बीस हज़ार रूपयों की ज़रूरत थी, जो उसे कहीं से न मिले। आख़िर में दूदे पहलवान ने ही अपना आत्म-सम्मान बेचकर उसके लिए पैसों का इंतेज़ाम किया।
मोचना
यह एक ऐसी औरत की कहानी है जिसके चेहरे और जिस्म पर मर्दों की तरह बाल उग आते थे, जिनको उखाड़ने के लिए वह अपने साथ एक मोचना रखा करती थी। हालाँकि देखने में वह कोई ज़्यादा ख़ूबसूरत नहीं थी फिर भी उसमें कोई ऐसी बात थी कि जो भी मर्द उसे देखता उस पर आशिक़ हो जाता। इस तरह उसने बहुत से मर्द बदले। जिस मर्द के पास भी वह गई अपना मोचना साथ लेती गई। अगर कभी वह पुराने मर्द के पास छूट गया तो उसने ख़त लिखकर उसे मंगवा लिया। जब वह एक शायर को छोड़ कर गई तो उसने उसका मोचना देने से इंकार कर दिया ताकी रिश्ते की एक वजह तो बनी रहे।
अनार कली
सलीम नाम के एक ऐसे नौजवान की कहानी जो ख़ुद को शहज़ादा सलीम समझने लगता है। उसे कॉलेज की एक ख़ूबसूरत लड़की से मोहब्बत हो जाती है, पर वह लड़की उसे भाव नहीं देती। उसकी मोहब्बत में दीवाना हो कर वह उसे अनारकली का नाम देता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसके माँ-बाप ने उसी नाम की लड़की से उसकी शादी तय कर दी है। शादी की ख़बर सुनकर वह दीवाना हो जाता है और तरह-तरह के ख़्वाब देखने लगता है। सुहागरात को जब वह दुल्हन का घूँघट हटाता है तो उसे पता चलता है कि वह उसी नाम की कोई दूसरी लड़की थी।
आमिना
यह कहानी दौलत की हवस में रिश्तों की ना-क़द्री और इंसानियत से वंचित कुकर्म कर गुज़रने वाले व्यक्तियों के अंजाम को पेश करती है। दौलत की लालची सौतेली माँ के सताये हुए चंदू और बिंदू को जब क़िस्मत नवाज़ती है तो वो दोनों भी अपने मुश्किल दिन भूल कर रिश्तों की पवित्रता को मजरुह करने पर आमादा हो जाते हैं। चंदू अपने भाई बिंदू के बहकावे में आकर अपनी बीवी और बच्चे को सिर्फ़ दौलत की हवस में छोड़ देता है। जब दौलत ख़त्म हो जाती है और नशा उतरता है तो वह अपनी बीवी के पास वापस जाता है। उसका बेटा उसे उसी दरिया के पास ले जाता है जहाँ चंदू की सौतेली माँ ने डूबने के लिए उन दोनों भाइयों को छोड़ा था और बताता है कि यहाँ पर है मेरी माँ।
तमाशा
दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान बाज़ारों में मुसल्लह पुलिस की गश्त एक अजीब हैबतनाक
खोल दो
अमृतसर से स्शपेशल ट्रेन दोपहर दो बजे को चली और आठ घंटों के बाद मुग़लपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। मुतअद्दिद ज़ख़्मी हुए और कुछ इधर उधर भटक गए। सुबह दस बजे कैंप की ठंडी ज़मीन पर जब सिराजुद्दीन ने आँखें खोलीं और अपने चारों तरफ़ मर्दों, औरतों
क़र्ज़ की पीते थे...
"मिर्ज़ा ग़ालिब की शराब नोशी और क़र्ज़ अदा न करने के बाइस मामला अदालत में पहुँच जाता है। वहाँ मुफ़्ती सद्र-उद-दीन आज़ुर्दा अदालत की कुर्सी पर बिराजमान होते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़लती साबित हो जाने के बाद मुफ़्ती सद्र-उद-दीन जुर्माना की सज़ा देते हैं और अपनी जेब-ए-ख़ास से जुर्माना अदा भी कर देते हैं।"
बुर्क़े
कहानी में बुर्क़े की वजह से पैदा होने वाली मज़हका-खेज़ सूरत-ए-हाल को बयान किया गया है। ज़हीर नामक नौजवान को अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की से इश्क़ हो जाता है। उस घर में तीन लड़कियाँ हैं और तीनों बुर्क़े का इस्तेमाल करती हैं। ज़हीर ख़त किसी और लड़की को लिखता है और हाथ किसी का पकड़ता है। उसी चक्कर में एक दिन उसकी पिटाई हो जाती है और पिटाई के तुरंत बाद उसे एक रुक़्क़ा मिलता है कि तुम अपनी माँ को मेरे घर क्यों नहीं भेजते, आज तीन बजे सिनेमा में मिलना।
इश्क़-ए-हक़ीक़ी
अख़्लाक़ नामी नौजवान को सिनेमा हाल में परवीन नाम की एक लड़की से इश्क़ हो जाता है जिसके घर में सख़्त पाबंदियाँ हैं। अख़्लाक़ हिम्मत नहीं हारता और उन दोनों में ख़त-ओ-किताबत शुरू हो जाती है और फिर एक दिन परवीन अख़्लाक़ के साथ चली आती है। परवीन के गाल के तिल पर बोसा लेने के लिए अख़्लाक़ जब आगे बढ़ता है तो बदबू का एक तेज़ भभका अख़्लाक़ के नथुनों से टकराता है और तब उसे मालूम होता है कि परवीन के मसूढ़े सड़े हुए हैं। अख़्लाक़ उसे छोड़कर अपने दोस्त के यहाँ लायलपुर चला जाता है। दोस्त के गै़रत दिलाने पर वापस आता है तो परवीन को मौजूद नहीं पाता है।
शादाँ
यह कहानी अमीर घरों के मर्दों द्वारा उनके यहाँ काम करने वाली ग़रीब, पीड़ित और कमसिन लड़कियों के यौन शोषण पर आधारित है। ख़ान बहादुर मोहम्मद अस्लम ख़ान बहुत संतुष्ट और ख़ुशहाल ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। उनके तीन बच्चे थे, जो स्कूल के बाद सारा दिन घर में शोर-गु़ल मचाते रहते थे। उन्हीं दिनों एक ईसाई लड़की शादां उनके घर में काम करने आने लगी। वह भी बच्ची थी, पर अचानक ही उसमें जवानी के रंग-ढंग दिखने लगे। फिर एक रोज़ ख़ान साहब को शादां के बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। शादां तो उसी रोज़ मर गई थी और ख़ान साहब भी सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे।
हजामत
"मियाँ-बीवी की नोक झोंक पर मब्नी मज़ाहिया कहानी है, जिसमें बीवी को शौहर के बड़े बालों से डर लगता है लेकिन इस बात को ज़ाहिर करने से पहले हज़ार तरह के गिले-शिकवे करती है। शौहर कहता है कि बस इतनी सी बात को तुमने बतंगड़ बना दिया, मैं जा रहा हूँ। बीवी कहती है कि ख़ुदा के लिए बता दीजिए कहाँ जा रहे हैं वर्ना मैं ख़ुदकुशी कर लूँगी। शौहर जवाब देता है नुसरत हेयर कटिंग सैलून।"
मोज़ेल
औरत के त्याग, बलिदान और मुहब्बत व ममता के इर्द-गिर्द बुनी गई यह है। मोज़ील एक आज़ाद-मिज़ाज यहूदी लड़की है जो पाबंद वज़ा सरदार त्रिलोचन का ख़ूब मज़ाक़ उड़ाती है लेकिन वक़्त पड़ने पर वो दंगा-ग्रस्त इलाक़े में जा कर त्रिलोचन की मंगेतर को दंगाइयों के चंगुल से आज़ाद कराती है और ख़ुद दंगे का शिकार हो जाती है।
शुग़ल
यह कहानी अमीरों के शौक़ और उनकी दिलचस्पियों के गिर्द घूमती है। एक पहाड़ी इलाक़े में कुछ मज़दूर पत्थर साफ़ करने का काम किया करते थे। वहाँ सड़क से गुज़रने वाली तरह-तरह की लारियाँ ही उनके मनोरंजन का साधन थीं। एक रोज़ वहाँ एक नई गाड़ी आकर रुकी, उसमें से दो नौजवान उतरे और एक चमार की बेटी को अपने साथ लेकर चल दिए। ठेकेदार ने उन नौजवानों के रसूख़ को बयान करते हुए बताया कि यह तो अपने शुग़ल के लिए उस लड़की को ले जा रहे हैं, कुछ देर बाद उसे छोड़ जाएँगे।
मिस एडना जैक्सन
यह एक कॉलेज की ऐसी प्रिंसिपल की कहानी है, जिसने अपनी छात्रा के बॉय फ्रेंड से ही शादी कर ली थी। जब वो कॉलेज में आई तो छात्राओं ने उसे बिल्कुल मुँह नहीं लगाया था। हालाँकि अपने व्यवहार और ख़ुलूस के चलते वह जल्दी ही छात्राओं के बीच लोकप्रिय हो गई। इसी बीच उसे एक लड़की की मोहब्बत का पता चला, जो एक लेक्चरर से प्यार करती थी। लड़की की पूरी दास्तान सुनने के बाद प्रिंसिपल ने लेक्चरर को अपने घर बुलाया और फिर अपने से आधी उम्र के उस नौजवान के साथ शादी कर ली।
रामेशगर
मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से मैं उसके एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिनकी ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उसकी बहुत तारीफ़ करते थे और बा'ज़ औरतें जो अपने शौहरों से बिगड़ चुकी थीं
मौसम की शरारत
यह एक ऐसे नौजवान की कहानी है, जो कश्मीर घूमने गया है। सुबह की सैर के वक़्त वह वहाँ के आकर्षक दृश्य को देखता है और उसमें खोया हुआ चलता चला जाता है। तभी उसे कुछ भैंसो, गायों और बकरियों को लिए आती एक चरवाहे की लड़की दिखाई देती है। वह उसे इतनी ख़ूबसूरत नज़र आती है कि उसे उससे मोहब्बत हो जाती है। लड़की भी घर जाते हुए तीन बार उसे मुड़कर देखती है। कुछ देर उसके घर के पास खड़े रहने के दौरान बारिश होने लगती है, और जब तक वह डाक बंगले पर पहुँचता है तब तक वह पूरी तरह भीग जाता है।
असली जिन
लेस्बियन संबंधों पर आधारित कहानी। फर्ख़ंदा अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी थी। बचपन में ही उसके बाप का देहांत हो गया था तो वह अकेले अपनी माँ के साथ रहने लगी थी। जवानी का सफ़र उसने तन्हा ही गुज़ार दिया। जब वह अट्ठारह साल की हुई तो उसकी मुलाक़ात नसीमा से हुई। नसीमा एक पंजाबी लड़की थी, जो हाल ही में पड़ोस में रहने आई थी। नसीमा एक लंबी-चौड़ी मर्दों के स्वभाव वाली महिला थी, जो फर्ख़ंदा को भा गई थी। जब फर्ख़ंदा की माँ ने उसका नसीमा से मिलना बंद कर दिया तो वह आधी पागल हो गई। लोगों ने कहा कि उस पर जिन्न है, पर छत पर जब एक दिन उसकी मुलाक़ात नसीमा के छोटे भाई से हुई तो उसके सभी जिन्न भाग गए।
ख़ुशबूदार तेल
यह मालिक और घर में काम करने वाली नौकरानी के बीच चल रहे अवैध संबंधों पर आधारित कहानी है। दोनों मियाँ बीवी में किसी बात को लेकर कहा-सुनी हो जाती है। इसी कहा-सुनी में उसकी बीवी बताती है कि उसने नौकरानी को निकाल दिया है। जब वह इसका कारण पूछता है तो वह बताती है कि उसके सिर में से भी उसी तेल की ख़ुश्बू आती थी जो उसके मियाँ के सिर में से आ रही है।
क़ब्ज़
नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडियो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के शोर की बदौलत हमारे सेठ साहब का काफ़ी नुक़्सान होता
फूजा हराम दा
हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअ’ल्लिक़ अपने तास्सुरात बयान किए जिससे उसको अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर का था। कोई लुधियाने का और कोई लाहौर का। मगर सबके सब स्कूल
वालिद साहब
ये एक अर्ध हास्यपूर्ण रूमानी कहानी है। तौफ़ीक़ के वालिद साहब डी एस पी थे जिनका एक अस्पताल में इलाज हो रहा था। वहाँ तौफ़ीक़ की नज़र एक नर्स से लड़ गई और जिस शाम को तौफ़ीक़ नर्स के साथ लॉंग ड्राईव पर जाने वाला था उसी शाम उसने वालिद को नर्स का चुम्बन लेते हुए देखा। जिस वक़्त तौफ़ीक़ वार्ड में दाख़िल हुआ उसके साथ उसकी माँ भी थीं।
वह लड़की
कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने दंगों के दौरान चार मुसलमानों की हत्या की थी। एक दिन वह घर में अकेला था तो उसने बाहर पेड़ के नीचे एक लड़की को बैठे देखा। इशारों से उसे घर बुलाने में नाकाम रहने के बाद वह उसके पास गया और ज़बरदस्ती उसे घर ले आया। जल्दी ही उसने उसे क़ाबू में कर लिया और चूमने लगा। बिस्तर पर जाने से पहले लड़की ने उससे पिस्तौल देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो उसने अपनी पिस्तौल लाकर उसे दे दी। लड़की ने पिस्तौल हाथ में लेते ही चला दी और वह वहीं ढेर हो गया। जब उसने पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तो लड़की ने बताया कि उसने जिन चार मुसलमानों की हत्या की थी उनमें एक उस लड़की का बाप भी था।
टेढ़ी लकीर
"एक आज़ादी पसंद, अज़ियत पसंद, साफ़-गो और डगर से हट कर कुछ अनोखा करने की धुन रखने वाले व्यक्ति की कहानी है जो अपनी इन्फ़िरादियत पसंदी के हाथों मजबूर हो कर एक रात अपनी निकाही बीवी को ही ससुराल से भगा ले जाता है।"
कबूतरों वाला साईं
"कहानी इंसानी आस्थाओं और मिथ्या लांछनों पर आधारित है। माई जीवाँ के नीम पागल बेटे को चमत्कारी समझना, सुंदर जाट डाकू जिसका वुजूद तक संदिग्ध है उससे गाँव वालों का खौफ़ज़दा रहना, नीती के ग़ायब होने को सुंदर जाट से वाबस्ता करना, ऐसी परिकल्पनाएं हैं जिनकी सत्यता का कोई तर्क नहीं।"
फुंदने
कहानी का मौज़ू सेक्स और हिंसा है। कहानी में एक साथ इंसान और जानवर दोनों को पात्र के रूप में पेश किया गया है। जिन्सी अमल से पैदा होने वाले नतीजों को स्वीकार न कर पाने की स्थिति में बिल्ली के बच्चे, कुत्ते के बच्चे, ढलती उम्र की औरतें जिनमें जिन्सी कशिश बाक़ी नहीं, वे सब के सब मौत का शिकार होते नज़र आते हैं।
बलवंत सिंह मजेठिया
यह एक रूमानी कहानी है। शाह साहब काबुल में एक बड़े व्यापारी थे, वो एक लड़की पर मुग्ध हो गए। अपने दोस्त बलवंत सिंह मजीठिया के मशवरे से मंत्र पढ़े हुए फूल सूँघा कर उसे राम किया लेकिन दुल्हन के कमरे में दाख़िल होते ही दुल्हन मर गई और उसके हाथ में विभिन्न रंग के वही सात फूल थे जिन्हें शाह साहब ने मंत्र पढ़ कर सूँघाया था।
यज़ीद
करीम दादा एक ठंडे दिमाग़ का आदमी है जिसने तक़सीम के वक़्त फ़साद की तबाहियों को देखा था। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान जंग के तानाज़ुर में यह अफ़वाह उड़ती है कि हिन्दुस्तान वाले पाकिस्तान की तरफ़ आने वाले दरिया का पानी बंद कर रहे हैं। इसी बीच उसके यहाँ एक बच्चे का जन्म होता है जिसका नाम वह यज़ीद रखता है और कहता है कि उस यज़ीद ने दरिया बंद किया था, यह खोलेगा।
मजीद का माज़ी
ऐश-ओ-आराम में ज़िंदगी बसर करते हुए अपने अतीत को याद करने वाले एक अमीर शख़्स की कहानी है। वह अब बहुत अमीर है। उसके पास कोठी है, अच्छी तनख़्वाह है, बीवी-बच्चे हैं और हर तरह का आराम नसीब है। इन सब के बीच उसकी शांति न जाने कहाँ खो गई है। वह शांति जो उसे यह सब हासिल होने से पहले थी जब उसकी तनख़्वाह कम थी, बीवी-बच्चे नहीं थे, कारोबार था और न ही दूसरे झमेले। वह शांति से दो पैसे कमाता था और चैन से सोता था। अब सारे ऐश-ओ-आराम के बाद भी उसे वह शांति नसीब नहीं है।
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