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नेकी का रास्ता

एम एस नाज़

नेकी का रास्ता

एम एस नाज़

रात का वक़्त था। अंधेरा फैल चुका था कि हवेली के दरवाज़े पर किसी ने ज़ोर-ज़ोर से दस्तक दी। एक बुज़ुर्ग ने दरवाज़ा खोला तो बाहर एक नौजवान बेहोश पड़ा था। बुज़ुर्ग ने उसे उठाया और नरम-ओ-गुदगुदे बिस्तर पर लाकर लिटा दिया। नौजवान को होश आया तो उस के सामने सफ़ेद दाढ़ी वाले एक बुज़ुर्ग बैठे थे। उन्होंने मोहब्बत और शफ़क़त भरे लहजे में सवाल किया।

‘‘क्यों बेटा, तुम किस मुसीबत में फंसे हुए हो?’’

नौजवान ने लजाजत से बुज़ुर्ग के दोनों हाथ थाम लिए और कहा ''ख़ुदा के लिए मुझे अपनी पनाह में ले लीजिए।''

बुज़ुर्ग ने कुछ और पूछना मुनासिब ना समझा और कहाः

’’वो सामने वाला कमरा ख़ाली है। तुम शौक़ से उस में रहो। तुम मेरे मेहमान हो और मैं तुम्हारी पूरी पूरी हिफ़ाज़त करूँगा।''

नौजवान यहाँ आराम से रहने लगा। बुज़ुर्ग रोज़ाना सुब्ह-सवेरे उसे खाना देकर कहीं बाहर चले जाते और शाम होते थके-हारे परेशान हालत में वापस आजाते। उनके चेहरे की धूल से ऐसा लगता जैसे कोई शिकारी दिन-भर शिकार की तलाश में घूम फिर कर रात को मायूस घर लौटा हो।

नौजवान को ये मालूम ना था कि बुज़ुर्ग हर-रोज़ कहाँ जाते हैं।

एक रोज़ रात को बुज़ुर्ग अकेले बैठे थे। नौजवान उनके क़रीब पहुंचा और कहने लगा। ''आपने मुझे मेहमान बना कर और मेरी हिफ़ाज़त का वादा कर के मुझ पर बेहद एहसान किया है। मेरा दिल चाहता है कि आपकी इस मेहरबानी के सिले में आपके किसी काम आऊँ। आप हर-रोज़ सुब्ह-सवेरे कहाँ जाते हैं और शाम को परेशान और ग़मगीं क्यों वापस आते हैं? ''

ये सुनकर बुज़ुर्ग की आँखों में आँसू आगए। उन्होंने कहाः

’’बेटे, ये कहानी बड़ी दर्दनाक है। तुम उसे ना ही सुनो तो अच्छा है।''

नौजवान ने इसरार किया। ''नहीं बाबा, मैं आपकी कहानी ज़रूर सुनूँगा''

बुज़ुर्ग बोलेः अच्छा तुम ज़िद करते हो तो सुनो। इस शहर के गवर्नर का नाम इब्राहीम है। उसने मेरे इकलौते भाई को जान से मार डाला है। मेरा भाई बेगुनाह था। मैं इब्राहीम के ख़ून का प्यासा हूँ। वो गवर्नरी छोड़कर भाग गया है। पुलिस उसकी तलाश में छापे मार रही है। ख़लीफ़ा ने उसकी गिरफ़्तारी का इनाम चालीस हज़ार दिरहम मुक़र्रर कर रखा है लोग कहते हैं कि वो इसी शहर में कहीं छुपा हुआ है। मैं हर-रोज़ उसे ढ़ूढ़ने निकलता हूँ। मगर वो मेरे हाथ नहीं आता। एक-बार उसे पकड़ लूं, तो इनाम भी पाऊँ, और अपने भाई के ख़ून का बदला भी चुकाऊँ।''

ये सुनते ही नौजवान पर जैसे बिजली गिर पड़ी। वो सोचने लगा

मैं साँप से बचने के लिए गोया शेर के भट्ट में पहुँच गया हूँ मेरे मेज़बान ने मेरी जान बचाई है। मेरी ख़ातिर-तवाज़ो की है। मैं उसका शुक्रगुज़ार हूँ, मगर अब नज़र रहा है कि मैं ज़्यादा दिन अपनी जान नहीं बचा सकूँगा। इस के बाद नौजवान ने दिल में ठान ली कि अपनी कमबख़्त ज़िंदगी को बचाने की और कोशिश ना करूँगा। वो कई महीनों से अपनी जान बचाने के लिए मारा मारा फिर रहा था। पुलिस उसे तलाश करती हुई एक गाँव में पहुँचती, तो वो दूसरे गाँव में भाग जाता। अब उसके सामने कोई और रास्ता ना था कि वो पुलिस से बचने के लिए गाँव से निकल कर शहर चला जाये। क्योंकि शहर में लोग बहुत ज़्यादा होते हैं और इतने लोगों की आबादी में उसे पहचाने जाने का डर बहुत कम था।

एक रात वो छुपता छुपाता उसी हवेली के सामने पहुंच गया, जहाँ ये बुज़ुर्ग रहते थे। इसी बुज़ुर्ग के भाई को उसने नाहक़ क़त्ल करा दिया था आज वो उसी बुज़ुर्ग के सामने बैठा उनकी दर्दनाक कहानी सुन रहा था। बुज़ुर्ग की ज़बानी ये कहानी सुनकर नौजवान दिल कड़ा कर के बोल उठा।

’’मेरे बुज़ुर्ग, मैं ही गवर्नर इब्राहीम हूँ। मैंने ही आपके भाई का ख़ून किया है।''

बुज़ुर्ग ये सुनकर मुस्कुराए और बोले ‘‘मालूम होता है, तुम इस जवानी के आलम में ज़िंदगी से मायूस हो चुके हो जभी तुम अपने आपको इब्राहीम ज़ाहिर कर रहे हो।''

नौजवान ने कहा। ''नहीं नहीं बाबा, मैं अस्ली इब्राहीम हूँ। यक़ीन ना आए तो बे-शक पुलिस को बुला लीजिए।''

बुज़ुर्ग बोले ''तुम इस वक़्त मेरे मेहमान हो और मेरी पनाह में हो। इस्लाम का हुक्म है कि अपने मेहमान की हिफ़ाज़त करो और उसे कोई तकलीफ़ ना आने दो। इसलिए बेहतर है कि अब तुम रुपयों की ये थैली ले लो और यहाँ से चले जाओ, कहीं ऐसा ना हो कि मेरा ख़ून खौलने लगे और मैं इंतिक़ाम के जज़बे में तुम्हें क़त्ल कर दूँ या ख़लीफ़ा के हवाले कर दूँ।''

इस के बाद बुज़ुर्ग ने रुपयों की थैली पेश करते हुए नौजवान से कहा। ''तुम जितनी जल्दी हो सके यहाँ से चले जाओ।''

नौजवान ने कहा। ''बाबा, अब मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा। आप बहुत नेक और रहम-दिल इन्सान हैं। मुझसे ग़लती हो गई कि मैंने आपके भाई का ख़ून किया। इस्लाम में ख़ून की सज़ा ख़ून ही है। मैं ज़्यादा देर ज़िंदा नहीं रहना चाहता। आप मुझे पकड़ कर ख़लीफ़ा के सामने पेश कर दें। मैं चाहता हूँ कि मुझे जल्द से जल्द फांसी के तख़्ते पर लटका दिया जाये।''

बुज़ुर्ग का दिल ये बातें सुनकर रहम के जज़बे से भर गया। उन्होंने कहा ''इस्लाम में उस शख़्स की बड़ाई और तारीफ़ बयान की गई है, जो रहम-दिल और नेक हो और अपने दुश्मन को माफ़ कर दे।''

बुज़ुर्ग की इस बात पर नौजवान की आँखों में आँसू आगए। वो उनकी तरफ़ इल्तिजा भरी नज़रों से देख रहा था कि बुज़ुर्ग फ़ौरन बोल उठे। ''जाओ मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया।''

नौजवान ये सुनकर बुज़ुर्ग से लिपट गया। उन्होंने उसे प्यार से थपकी दी और फिर उसे साथ लेकर ख़लीफ़ा के महल की तरफ़ चल पड़े। शाम हो चुकी थी। जब वो ख़लीफ़ा के महल में पहुंचे, उस वक़्त ख़लीफ़ा महल के चमन में अपने वज़ीरों के साथ टहल रहा था। इब्राहीम के चेहरे को देखते ही उसे ग़ुस्सा आगया, मगर बुज़ुर्ग ने सर झुकाते हुए सलाम किया और कहने लगे। ''हुज़ूर, मैंने अपने भाई के क़ातिल को माफ़ कर दिया है।'' इस के बाद इब्राहीम ने आगे बढ़कर ख़लीफ़-ए-वक़्त के हाथ चूम लिए और उन से वादा किया कि आइंदा ज़िंदगी में वो कभी किसी पर ज़ुल्म नहीं करेगा। ख़लीफ़-ए-वक़्त ने बुज़ुर्ग के कहने पर इब्राहीम को माफ़ कर दिया और उसे दुबारा कूफ़े शहर का गवर्नर बना दिया। कहते हैं कि गवर्नर इब्राहीम ने बाक़ी सारी उम्र अल्लाह की याद में गुज़ारी, और ग़रीबों की बड़ी ख़िदमत की।

जानते हो बच्चो उस ख़लीफ़ा का क्या नाम था? उस का नाम था ''सफ़्फ़ाह'' वो बग़दाद का ख़लीफ़ा था, जो कहा करता था कि ग़रीबों से इन्साफ़ करो। इन्साफ़ का हमेशा बोल-बाला होता है।

प्यारे बच्चो!

अगर हम भी ऐसी नेक बातों पर अमल करें, तो दुनिया हमको कभी ना भूलेगी।

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