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साहिलों से दूर जिस दिन कश्तियाँ रह जाएँगी

ख़ालिद सिद्दीक़ी

साहिलों से दूर जिस दिन कश्तियाँ रह जाएँगी

ख़ालिद सिद्दीक़ी

MORE BYख़ालिद सिद्दीक़ी

    साहिलों से दूर जिस दिन कश्तियाँ रह जाएँगी

    चार जानिब ख़ाली ख़ाली बस्तियाँ रह जाएँगी

    फिर समुंदर में उतर जाएगा पानी बूँद बूँद

    जाल में दम तोड़ती कुछ मछलियाँ रह जाएँगी

    ये तवाना जिस्म थक कर एक दिन गिर जाएगा

    खाल के अंदर फड़कती पस्लियाँ रह जाएँगी

    बाग़बानों का चमन यूँही रहा तो एक दिन

    बाग़ की पहचान बस दो तितलियाँ रह जाएँगी

    मैं कहता था कि दिल की बात कहने के लिए

    खोखले अल्फ़ाज़ की बैसाखियाँ रह जाएँगी

    यूँ अगर घटते रहे इंसाँ तो 'ख़ालिद' देखना

    इस ज़मीं पर बस ख़ुदा की बस्तियाँ रह जाएँगी

    स्रोत :
    • पुस्तक : Funoon (Monthly) (पृष्ठ 555)
    • रचनाकार : Ahmad Nadeem Qasmi
    • प्रकाशन : 4 Maklood Road, Lahore (25Edition Nov. Dec. 1986)
    • संस्करण : 25Edition Nov. Dec. 1986

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