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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

मिर्ज़ा ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

मिर्ज़ा ग़ालिब

MORE BYमिर्ज़ा ग़ालिब

    रोचक तथ्य

    इस ग़ज़ल को रदीफ़ "होने तक" के साथ गाया और जाना जाता है। अलबत्ता दीवान-ए-ग़ालिब में इस ग़ज़ल का ज़िक्र रदीफ़ "होते तक" के साथ मिलता है।

    आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

    कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

    दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग

    देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक

    आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब

    दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

    ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र

    सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक

    हम ने माना कि तग़ाफ़ुल करोगे लेकिन

    ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक

    परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम

    मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक

    यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल

    गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक

    ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज

    शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक

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    शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

    आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

    नोमान शौक़

    आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक नोमान शौक़

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