अब्बास अली ख़ान बेखुद
ग़ज़ल 23
अशआर 7
हालत के तग़य्युर पर हो मातम-ए-माज़ी क्यूँ
इक वो भी ज़माना था इक ये भी ज़माना है
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तवज्जोह चारा-गर की बाइस-ए-तकलीफ़ है 'बेख़ुद'
इज़ाफ़ा है मुसीबत में दवाओं का असर करना
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किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना
है अपने मतलब-ए-दुश्वार को दुश्वार-तर करना
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इन बुतों ने मुझ को बे-ख़ुद किस क़दर धोके दिए
सीधा-सादा जान कर मर्द-ए-मुसलमाँ देख कर
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हमारी ना-उमीदी का तो है इल्ज़ाम क़िस्मत पर
तुम्हारा मुद्दआ' होता तो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता होता
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