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आदिल मंसूरी

1936 - 2008 | अहमदाबाद, भारत

अग्रणी आधुनिक शायार/भाषा के परम्परा-विरोधी प्रयोग के लिए प्रसिद्ध/अच्छे कैलीग्राफ़र और नाटक कार भी

अग्रणी आधुनिक शायार/भाषा के परम्परा-विरोधी प्रयोग के लिए प्रसिद्ध/अच्छे कैलीग्राफ़र और नाटक कार भी

आदिल मंसूरी

ग़ज़ल 38

नज़्म 42

अशआर 47

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर

उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को

काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के

वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया

ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से

कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया

उदासी की मेहनत ठिकाने लगी

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर

वो तस्वीर बातें बनाने लगी

पुस्तकें 1

 

ऑडियो 27

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

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