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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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आग़ा हज्जू शरफ़

1812 - 1887

लखनऊ के अहम क्लासिकी शायर, आतिश के शागिर्द, लखनऊ पर लिखी अपनी लम्बी मसनवी ‘अफ़साना-ए-लखनऊ’ के लिए मशहूर

लखनऊ के अहम क्लासिकी शायर, आतिश के शागिर्द, लखनऊ पर लिखी अपनी लम्बी मसनवी ‘अफ़साना-ए-लखनऊ’ के लिए मशहूर

आग़ा हज्जू शरफ़

ग़ज़ल 42

अशआर 25

कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा

मिरी मुराद भी आई तो मुस्तआर आई

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क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो ही सकें

हम ये कहते हैं कि जाएँ तो जा ही सकें

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ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई

वो बंद-ओ-बस्त है कि हवा का गुज़र नहीं

तेज़ कब तक होगी कब तक बाढ़ रक्खी जाएगी

अब तो क़ातिल तिरी शमशीर आधी रह गई

लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही दिल

शर्मिंदा करना मुझे तू दस्त-ए-दुआ का

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पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 1

 

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