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अहमद अता

अहमद अता

ग़ज़ल 22

अशआर 29

हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं

और पुकारा तो पुकारा भी सदाओं के बग़ैर

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ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'

इस का मतलब है मिरा यार ख़फ़ा है मुझ से

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ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ

सोचते रहिए कि इस ख़्वाब की ताबीर है क्या

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ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'

यानी भूले भी नहीं तुम को पुकारा भी नहीं

सड़क पे बैठ गए देखते हुए दुनिया

और ऐसे तर्क हुई एक ख़ुद-कुशी हम से

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