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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए अहमद फ़राज़
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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Ahmad Faraz in a Mushaira अहमद फ़राज़
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Ahmad Faraz reciting his poetry in OSLO, 2006. अहमद फ़राज़
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Ahmed Faraz - Zindagi youn thi kay jeenay ka bahana tu tha - UrduWorld.Com अहमद फ़राज़
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At a mushaira अहमद फ़राज़
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Main ek do roz ka mehmaan tere shahr mein अहमद फ़राज़
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Mujhe Tere Dard ke Alava Bhi- Very Nice Nazm Written & Recited By Ahmed Faraz अहमद फ़राज़
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Mushaira Jashn e Faiz 1986 अहमद फ़राज़
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Reciting own poetry अहमद फ़राज़
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इक बूँद थी लहू की सर-ए-दार तो गिरी अहमद फ़राज़
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ऐ मेरे सारे लोगो अहमद फ़राज़
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क़ुर्ब-ए-जानाँ का न मय-ख़ाने का मौसम आया अहमद फ़राज़
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क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता अहमद फ़राज़
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गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए अहमद फ़राज़
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जब तुझे याद करें कार-ए-जहाँ खेंचता है अहमद फ़राज़
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तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही अहमद फ़राज़
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पहली आवाज़ अहमद फ़राज़
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मुहासरा अहमद फ़राज़
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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में अहमद फ़राज़
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वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबला-पाई ले ले अहमद फ़राज़
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शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो अहमद फ़राज़
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हम भी शाइ'र थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं अहमद फ़राज़
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हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे अहमद फ़राज़
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अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है अहमद फ़राज़
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अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ अहमद फ़राज़
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अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ अहमद फ़राज़
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अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं अहमद फ़राज़
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इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ अहमद फ़राज़
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उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है अहमद फ़राज़
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उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया अहमद फ़राज़
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उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया अहमद फ़राज़
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ऐ मेरे सारे लोगो अहमद फ़राज़
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क़ुर्ब-ए-जानाँ का न मय-ख़ाने का मौसम आया अहमद फ़राज़
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क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे अहमद फ़राज़
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काली दीवार अहमद फ़राज़
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गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए अहमद फ़राज़
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चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है अहमद फ़राज़
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जान से इश्क़ और जहाँ से गुरेज़ अहमद फ़राज़
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तुझ से बिछड़ के हम भी मुक़द्दर के हो गए अहमद फ़राज़
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तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही अहमद फ़राज़
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पेच रखते हो बहुत साहिबो दस्तार के बीच अहमद फ़राज़
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मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला अहमद फ़राज़
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मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का अहमद फ़राज़
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मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का अहमद फ़राज़
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मुहासरा अहमद फ़राज़
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मुहासरा अहमद फ़राज़
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मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है अहमद फ़राज़
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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में अहमद फ़राज़
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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में अहमद फ़राज़
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ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं अहमद फ़राज़
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वहशतें बढ़ती गईं हिज्र के आज़ार के साथ अहमद फ़राज़
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वापसी अहमद फ़राज़
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अहमद फ़राज़
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अहमद फ़राज़
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सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की अहमद फ़राज़
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सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते अहमद फ़राज़
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हम तो यूँ ख़ुश थे कि इक तार गरेबान में है अहमद फ़राज़
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हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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2009 Ahmed Faraz interview Dr. Shahid Maqsood ARY Digital
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Interview अहमद फ़राज़
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Interview with Ahmad Faraz अहमद फ़राज़
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मेहदी हसन
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"Anam" a Nazm By Faraz Ahmad sung By: Sunil Chaudhry अज्ञात
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Aaj phir dil ne kaha aao bhuladen yaaden अज्ञात
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Ahmad Faraz Ghazals
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In Solidarity with Gaza - Ahmed Faraz Nazm अज्ञात
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Ye to uska hi karishma hai अज्ञात
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अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ ताहिरा सैयद
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अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ आक़िब साबिर
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें मेहदी हसन
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें ताहिरा सैयद
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उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया मसूद राणा
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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे मसूद तन्हा
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न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो इक़बाल बानो
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फिर उसी रहगुज़ार पर शायद प्रतिभा बघेल
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मुझ से पहले आक़िब साबिर
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ अज्ञात
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ अज्ञात
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ ताहिरा सैयद
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पंकज उदास
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अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था मेहदी हसन
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अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम ग़ुलाम अली
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें रूप कुमार राठौड़
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जगजीत सिंह
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें अज्ञात
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें एजाज़ हुसैन हज़रावी
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें मेहदी हसन
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें हबीब वली मोहम्मद
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें इक़बाल बानो
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अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी विविध
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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा मेहरान अमरोही
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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा नूर जहाँ
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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा अज्ञात
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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा जगजीत सिंह
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इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ भारती विश्वनाथन
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इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ अज्ञात
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उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है अज्ञात
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उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ भारती विश्वनाथन
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ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे रुना लैला
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कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो पंकज उदास
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क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे रुना लैला
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करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे ग़ुलाम अली
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क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे मेहरान अमरोही
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क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते एजाज़ हुसैन हज़रावी
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ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते इक़बाल बानो
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जब भी दिल खोल के रोए होंगे हुसैन बख्श
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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे मेहरान अमरोही
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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे ग़ुलाम अली
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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे मसूद मलिक
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जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो अज्ञात
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जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो वत्सला मेहरा
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तेरी बातें ही सुनाने आए मेहरान अमरोही
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तेरी बातें ही सुनाने आए ग़ुलाम अली
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तेरी बातें ही सुनाने आए मुन्नी बेगम
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दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें मेहरान अमरोही
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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला ग़ुलाम अली
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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला जगजीत सिंह
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न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो एजाज़ हुसैन हज़रावी
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न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो इक़बाल बानो
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पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे नूर जहाँ
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ये आलम शौक़ का देखा न जाए ग़ुलाम अली
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ये आलम शौक़ का देखा न जाए नाहीद अख़्तर
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ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी मेहरान अमरोही
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यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा नुसरत फ़तह अली ख़ान
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ फ़रीदा ख़ानम
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ मेहदी हसन
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ रफ़ाक़त अली ख़ान
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ हबीब वली मोहम्मद
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ श्रुति पाठक
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रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं अज्ञात
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ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें अज्ञात
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शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो मेहदी हसन
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं उस्ताद सलामत अली ख़ान
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं मेहरान अमरोही
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं गायत्री अशोकन
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं गायत्री अशोकन
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साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले अताउल्लाह ख़ान
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साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले मेहरान अमरोही
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सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते मेहरान अमरोही
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सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते नूर जहाँ
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हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू ग़ुलाम अली
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हम भी शाइ'र थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं अज्ञात
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हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे निहाल अब्दुल्लाह
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हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे मेहरान अमरोही
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तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ लता टंडन
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आशा भोसले
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ रुना लैला