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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमद ख़याल

1979

अहमद ख़याल

ग़ज़ल 27

अशआर 20

महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक

तिरे जमाल से कितनों ने इस्तिफ़ादा क्या

ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी

उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था

मैं था सदियों के सफ़र में 'अहमद'

और सदियों का सफ़र था मुझ में

ऐन मुमकिन है कि बीनाई मुझे धोका दे

ये जो शबनम है शरारा भी तो हो सकता है

ये भी तिरी शिकस्त नहीं है तो और क्या

जैसा तू चाहता था मैं वैसा नहीं बना

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