1894 - 1950 | हैदराबाद, भारत
हैदराबाद के प्रसिद्ध शायर,जोश के समकालीन, दोनों के मध्य समकालिक नोक झोंक भी रही. अपनी लम्बी नज़्म ‘कौल फैसल’ के लिए प्रसिद्ध
फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे
नक़ाब उठाओ कि कुछ दिन ज़रा बहार रहे
मुझी को पर्दा-ए-हस्ती में दे रहा है फ़रेब
वो हुस्न जिस को किया जल्वा-आफ़रीं मैं ने
चटक में ग़ुंचे की वो सौत-ए-जाँ-फ़ज़ा तो नहीं
सुनी है पहले भी आवाज़ ये कहीं मैं ने
तुम ने हर ज़र्रे में बरपा कर दिया तूफ़ान-ए-शौक़
इक तबस्सुम इस क़दर जल्वों की तुग़्यानी के साथ
गुफ़्तुगू-ए-सूरत-ओ-म'अनी है उनवान-ए-हयात
खेलते हैं वो मिरी फ़ितरत की हैरानी के साथ
अनवार
1941
Asrar
Qaul-e-Faisal
1948
Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts
Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online