अख़्तर जमाल
अशआर 3
हम पहाड़ों को रौंद आए थे
जब सलीक़ा नहीं था चलने का
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जलती हुई सिगरेट बुझाई नहीं मैं ने
जीने के लिए और सहारा भी नहीं था
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जिस को देखा ही नहीं आँखों ने
उस की तस्वीर बना देते हैं
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