अलीम उस्मानी
ग़ज़ल 12
अशआर 3
खिंचा खिंचा नज़र आता है हम से हर आँचल
सितारे तोड़ के लाएँ तो लाएँ किस के लिए
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नहीं है कोई हमें ज़िंदगी का शौक़ मगर
हम अपनी जान से जाएँ तो जाएँ किस के लिए
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ख़िलाफ़ हम नहीं अख़्तर-शुमारियों के मगर
सवाल ये है कि नींदें गंवाएँ किस के लिए
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