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अल्लामा इक़बाल

1877 - 1938 | लाहौर, पाकिस्तान

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

अल्लामा इक़बाल

ग़ज़ल 115

नज़्म 434

अशआर 134

कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है

बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है

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तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया

मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में

निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़

यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए

मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़

अँधेरी शब में है चीते की आँख जिस का चराग़

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हाँ दिखा दे तसव्वुर फिर वो सुब्ह शाम तू

दौड़ पीछे की तरफ़ गर्दिश-ए-अय्याम तू

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उद्धरण 10

इन्सानों से मिलने वाले सदमात के इलावा इन्सान की याददाश्त आम तौर पर ख़राब होती है।

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तारीख़ एक तरह की अमली अख़्लाक़ियात है। दूसरे उलूम की तरह अगर अख़्लाक़ियात एक तजुर्बाती इल्म है। तो उसे इन्सानी तजुर्बात के इन्किशाफ़ात पर मब्नी होना चाहीए। इस नुक़्ता-ए-नज़र के बर्मला इज़हार से उन लोगों के भी नाज़ुक एहसासात को यक़ीनन सदमा पहुँचेगा। जो अख़लाक़ के मुआमले में सख़्त-गीर होने के दावेदार हैं। लेकिन जिनका अवामी किरदार तारीख़ी तालीमात से मुतय्यन होता है।

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हमारी रूह को उस वक़्त अपना इरफ़ान हासिल होता है, जब हम किसी मुफ़क्किर से रुशनास होते हैं। जब तक मैं गोएटे के तसव्वुरात की ला-मुतनाहियत से बे-ख़बर था। उस वक़्त तक मैं अपनी कम-माएगी पर मुत्तला ना था।

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एक मुक़द्दस झूट है।

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शाइरी में मंतिक़ी सच्चाई की तलाश बिल्कुल बे-कार है, बे-तख़य्युल का नसब-उल-ऐन हुस्न है, ना कि सच्चाई। इसलिए किसी फ़नकार की अज़मत को ज़ाहिर करने के लिए उसकी तख़्लीक़ात में से वो इक़्तिबासात पेश कीजिए। जो आपकी राय में साईंसी हक़ायक़ पर मुश्तमिल हों।

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क़ितआ 10

रुबाई 23

क़िस्सा 13

पुस्तकें 1491

चित्र शायरी 22

वीडियो 105

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अल्लामा इक़बाल

Mohd. Iqbal - Zubaan-e-Ishq

मुज़फ्फर अली

ऑडियो 58

अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

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