आमिर उस्मानी
ग़ज़ल 8
नज़्म 3
अशआर 14
ये क़दम क़दम बलाएँ ये सवाद-ए-कू-ए-जानाँ
वो यहीं से लौट जाए जिसे ज़िंदगी हो पियारी
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उस के वादों से इतना तो साबित हुआ उस को थोड़ा सा पास-ए-तअल्लुक़ तो है
ये अलग बात है वो है वादा-शिकन ये भी कुछ कम नहीं उस ने वादे किए
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मिरी ज़िंदगी का हासिल तिरे ग़म की पासदारी
तिरे ग़म की आबरू है मुझे हर ख़ुशी से प्यारी
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