अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल 62
नज़्म 39
अशआर 64
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
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चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन
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बड़े सुकून से डूबे थे डूबने वाले
जो साहिलों पे खड़े थे बहुत पुकारे भी
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क्या हो जाता है इन हँसते जीते जागते लोगों को
बैठे बैठे क्यूँ ये ख़ुद से बातें करने लगते हैं
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क़ितआ 3
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