अम्मार इक़बाल
ग़ज़ल 12
नज़्म 2
अशआर 12
मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ
ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
एक दरवेश को तिरी ख़ातिर
सारी बस्ती से इश्क़ हो गया है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मैं ने तस्वीर फेंक दी है मगर
कील दीवार में गड़ी हुई है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
उस ने नासूर कर लिया होगा
ज़ख़्म को शाएरी बनाते हुए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए