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अक़ील नोमानी

1958 | बरेली, भारत

समकालीन शायर, मुशायरों में लोकप्रिय

समकालीन शायर, मुशायरों में लोकप्रिय

अक़ील नोमानी

ग़ज़ल 21

अशआर 24

बड़ी ही कर्बनाक थी वो पहली रात हिज्र की

दोबारा दिल में ऐसा दर्द आज तक नहीं हुआ

मुस्कुराने की क्या ज़रूरत है

आप यूँ भी उदास लगते हैं

लगता है कहीं प्यार में थोड़ी सी कमी थी

और प्यार में थोड़ी सी कमी कम नहीं होती

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कुछ देर उस ने देख लिया चाँद की तरफ़

कुछ देर आज चाँद को इतराना चाहिए

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मुसाफ़िर तिरा ज़िक्र करते रहे

महकता रहा रास्ता देर तक

पुस्तकें 2

 

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