अर्शी भोपाली
ग़ज़ल 15
अशआर 6
निगाह-ए-नाज़ की मासूमियत अरे तौबा
जो हम फ़रेब न खाते तो और क्या करते
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बहुत अज़ीज़ न क्यूँ हो कि दर्द है तेरा
ये दर्द बढ़ के रहा इज़्तिराब हो के रहा
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हमें तो अपनी तबाही की दाद भी न मिली
तिरी नवाज़िश-ए-बेजा का क्या गिला करते
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अजीब चीज़ है ये शौक़-ए-आरज़ू-मंदी
हयात मिट के रही दिल ख़राब हो के रहा
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