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आरज़ू लखनवी

1873 - 1951 | कराची, पाकिस्तान

प्रख्यात पूर्व-आधुनिक शायर, जिगर मुरादाबादी के समकालीन।

प्रख्यात पूर्व-आधुनिक शायर, जिगर मुरादाबादी के समकालीन।

आरज़ू लखनवी

ग़ज़ल 64

नज़्म 1

 

अशआर 92

एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम

आख़िर इतना फ़र्क़ क्यूँ तक़्सीम-ए-आब-ओ-गिल में है

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किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की

थोड़ी सी तसल्ली हो तो गई माना कि वो बोल के झूट गया

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ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा

मुझे दो-रंगी-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा

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मख़रब-ए-कार हुई जोश में ख़ुद उजलत-ए-कार

पीछे हट जाएगी मंज़िल मुझे मालूम था

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है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो एक हाथ से खुल सके

कोई अहद तोड़े करे दग़ा मिरा फ़र्ज़ है कि वफ़ा करूँ

रुबाई 5

 

नअत 1

 

पुस्तकें 45

चित्र शायरी 4

 

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