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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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असलम इमादी

ग़ज़ल 8

नज़्म 7

अशआर 7

तुम मिरे कमरे के अंदर झाँकने आए हो क्यूँ

सो रहा हूँ चैन से हूँ ठीक है सब ठीक है

हज़ार रास्ते बदले हज़ार स्वाँग रचे

मगर है रक़्स में सर पर इक आसमान वही

उन्हें ये फ़िक्र कि दिल को कहाँ छुपा रक्खें

हमें ये शौक़ कि दिल का ख़सारा क्यूँकर हो

हम भी 'असलम' इसी गुमान में हैं

हम ने भी कोई ज़िंदगी जी थी

तुम्हारे दर्द से जागे तो उन की क़द्र खुली

वगरना पहले भी अपने थे जिस्म-ओ-जान वही

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