अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल 22
शेर 20
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
और उस के लिए जो कभी आया न गया हो
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ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले
मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ
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कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
होता रहता है यूँ ही क़र्ज़ बराबर मेरा
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ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
और मैं उसी चेहरे से नए ख़्वाब सजाऊँ
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वीडियो 15
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