अज़हर अब्बास
ग़ज़ल 15
अशआर 10
अकेला मैं ही नहीं जा रहा हूँ बस्ती से
ये रौशनी भी मिरे साथ जाने वाली है
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जो रुकावट थी हमारी राह की
रास्ता निकला उसी दीवार से
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सुना रहा है कहानी हमें मकीनों की
मकाँ के साथ ये आधा जला हुआ बिस्तर
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हँसी मज़ाक़ की बातें यहीं पे ख़त्म हुईं
अब इस के बअ'द कहानी रुलाने वाली है
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