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अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

ग़ज़ल 6

अशआर 5

रात इक शख़्स बहुत याद आया

जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ

अंधेरा इतना है अब शहर के मुहाफ़िज़ को

हर एक रात कोई घर जलाना पड़ता है

'शफ़क़' का रंग कितने वालेहाना-पन से बिखरा है

ज़मीं आसमाँ ने मिल के उनवान-ए-सहर लिक्खा

जाने कौन अपाहिज बना रहा है हमें

सफ़र में तर्क-ए-सफ़र का ख़याल क्यूँ आया

बहुत दिनों से इधर उस को याद भी किया

बहुत दिनों से उधर का ख़याल क्यूँ आया

पुस्तकें 1

 

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