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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Aziz Qaisi's Photo'

अज़ीज़ क़ैसी

1931 - 1992 | मुंबई, भारत

प्रमुखतम प्रगतीशील शायरों में शामिल / अपनी भावनात्मक तीक्षणता के लिए विख्यात

प्रमुखतम प्रगतीशील शायरों में शामिल / अपनी भावनात्मक तीक्षणता के लिए विख्यात

अज़ीज़ क़ैसी

ग़ज़ल 22

नज़्म 26

अशआर 14

इक नवा-ए-रफ़्ता की बाज़गश्त थी 'क़ैसी'

दिल जिसे समझते थे दश्त-ए-बे-सदा निकला

कई बार दौर-ए-कसाद में गिरे मेहर-ओ-माह के दाम भी

मगर एक क़ीमत-ए-जिंस-ए-दिल जो खरी रही तो खरी रही

क्या हाथ उठाइए दुआ को

हम हाथ उठा चुके दुआ से

चल 'क़ैसी' मेले में चल क्या रोना तन्हाई का

कोई नहीं जब तेरा मेरा सब मेरे सब तेरे

दिलों का ख़ूँ करो सालिम रखो गरेबाँ को

जुनूँ की रस्म ज़माना हुआ उठा दी है

पुस्तकें 9

 

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