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बद्र वास्ती

बद्र वास्ती

ग़ज़ल 10

नज़्म 2

 

अशआर 6

अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ

गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं

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हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर

ये तो बताइए कि पिता किस के पास है

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क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं

चेहरा कुछ और खिल उठा ज़हराब गर पिया

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आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए

वर्ना बच्चे तो लिया करते थे पागल के मज़े

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फलदार दरख़्तों ने रिझाया तो मुझे भी

आज़ाद परिंदों के लिए शाख़-ओ-समर क्या

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पुस्तकें 3

 

Recitation

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