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बालमोहन पांडेय

1998 | दिल्ली, भारत

नई नस्ल के उभरते हुए शायर, आसान ज़बान में शेर कहने के लिए मशहूर, नज़्म भी वसीला-ए-इज़हार में शामिल

नई नस्ल के उभरते हुए शायर, आसान ज़बान में शेर कहने के लिए मशहूर, नज़्म भी वसीला-ए-इज़हार में शामिल

बालमोहन पांडेय

ग़ज़ल 15

नज़्म 3

 

अशआर 3

मेरे अलावा उसे ख़ुद से भी मोहब्बत है

और ऐसा करने से वो बेवफ़ा नहीं होती

ग़मों से बैर था सो हम ने ख़ुद-कुशी कर ली

शजर गिरा के परिंदों से इंतिक़ाम लिया

हम अब उदास नहीं सर-ब-सर उदासी हैं

हमें चराग़ नहीं रौशनी कहा जाए

 

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