aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1791/2
मीर और सौदा के विवादास्पद समकालीन, दोनों शायरों की आलोचना के शिकार हुए
इश्क़ में बू है किबरियाई की
आशिक़ी जिस ने की ख़ुदाई की
इस बज़्म में पूछे न कोई मुझ से कि क्या हूँ
जो शीशा गिरे संग पे मैं उस की सदा हूँ
कल के दिन जो गिर्द मय-ख़ाने के फिरते थे ख़राब
आज मस्जिद में जो देखा साहब-ए-सज्जादा हैं
दिला उठाइए हर तरह उस की चश्म का नाज़
ज़माना ब तू न-साज़द तू बा ज़माना ब-साज़
ये रिंद दे गए लुक़्मा तुझे तो उज़्र न मान
तिरा तो शैख़ तनूर ओ शिकम बराबर है
Deewan-e-Baqa
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