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बशीर फ़ारूक़ी

1939 - 2019 | लखनऊ, भारत

बशीर फ़ारूक़ी

ग़ज़ल 10

अशआर 6

आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास

मेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे

हम तेरे पास के परेशान हैं बहुत

हम तुझ से दूर रहने को तय्यार भी नहीं

चले भी आओ कि ये डूबता हुआ सूरज

चराग़ जलने से पहले मुझे बुझा देगा

अजब सी आग थी जलता रहा बदन सारा

तमाम उम्र वो होंटों पे बन के प्यास रहा

पहले हम ने घर बना कर फ़ासले पैदा किए

फिर उठा दीं और दीवारें घरों के दरमियाँ

पुस्तकें 3

 

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