बहज़ाद लखनवी के शेर
आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए
इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं
नक़्श-ए-पा होती है पेशानी जहाँ रखता हूँ मैं
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'बहज़ाद' साफ़ साफ़ मैं कहता हूँ हाल-ए-दिल
शर्मिंदा-ए-कमाल मिरी शाइ'री नहीं
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मैं ढूँढ रहा हूँ मिरी वो शम्अ कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे
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टैग : शम्अ
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हम भी ख़ुद को तबाह कर लेते
तुम इधर भी निगाह कर लेते
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ऐ दिल की ख़लिश चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए
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ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं
जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं
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वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
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गो मुद्दतें हुई हैं किसी से जुदा हुए
लेकिन ये दिल की आग अभी तक बुझी नहीं
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ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
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टैग : मंज़िल
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मुझे तो होश न था उन की बज़्म में लेकिन
ख़मोशियों ने मेरी उन से कुछ कलाम किया
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टैग : ख़ामोशी
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