भास्कर शुक्ला
ग़ज़ल 15
अशआर 20
सितारों आसमाँ को जगमगा दो रौशनी से
दिसम्बर आज मिलने जा रहा है जनवरी से
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अगर है इश्क़ सच्चा तो निगाहों से बयाँ होगा
ज़बाँ से बोलना भी क्या कोई इज़हार होता है
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- ग़ज़ल देखिए
ख़्वाहिश सब रखते हैं तुझ को पाने की
और फिर अपनी अपनी क़िस्मत होती है
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वो भी मक़ाम आए है मजनूँ के बख़्त में
लैला दिखाई देने लगे हर दरख़्त में
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हैं दस्तरस में यूँ तो ज़बानें कई मगर
ख़ामोशी आज भी मेरी पहली पसंद है
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