चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल 13
नज़्म 12
अशआर 21
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
यही दौलत है मेरी और यही जाह-ओ-हशम मेरा
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चराग़ क़ौम का रौशन है अर्श पर दिल के
उसे हवा के फ़रिश्ते बुझा नहीं सकते
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दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना
आदमियत है यही और यही इंसाँ होना
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नया बिस्मिल हूँ मैं वाक़िफ़ नहीं रस्म-ए-शहादत से
बता दे तू ही ऐ ज़ालिम तड़पने की अदा क्या है
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