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दिवाकर राही

1914 - 1968 | रामपुर, भारत

प्रसिद्ध शायर, लोकप्रिय शे’र ‘अब तो इतनीभी मयस्सर नहीं मयखाने में - जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में’ के रचयिता

प्रसिद्ध शायर, लोकप्रिय शे’र ‘अब तो इतनीभी मयस्सर नहीं मयखाने में - जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में’ के रचयिता

दिवाकर राही

ग़ज़ल 4

 

अशआर 16

अगर नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है

इधर कश्ती ले आना यहाँ पानी बहुत कम है

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अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती

किनारों ने डुबोया है मुझे इस बात का ग़म है

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इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं

ज़ेहनों में अँधेरे हैं सड़कों पे उजाले हैं

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बहुत आसान है दो घूँट पी लेना तो 'राही'

बड़ी मुश्किल से आते हैं मगर आदाब-ए-मय-ख़ाना

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वक़ार-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-कर्बला की क़सम

यज़ीद मोरचा जीता है जंग हारा है

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पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 2

 

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