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एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

मुजफ्फरनगर, भारत

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 25

अशआर 5

मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ

मिरी क़िस्मत है बार-ए-हुक्मरानी पुश्त पर रखना

तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ

कि राह-ए-ज़ुल्मत में साथ देगा कोई चराग़-ए-अलील कब तक

ये दुनिया है यहाँ असली कहानी पुश्त पर रखना

लबों पर प्यास रखना और पानी पुश्त पर रखना

तिरे बदन की नज़ाकतों का हुआ है जब हम-रिकाब मौसम

नज़र नज़र में खिला गया है शरारतों के गुलाब मौसम

शुऊर-ए-नौ-उम्र हूँ मुझ को मता-ए-रंज-ओ-मलाल देना

कि मुझ को आता नहीं ग़मों को ख़ुशी के साँचों मैं ढाल देना

पुस्तकें 3

 

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