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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़रहान सालिम

ग़ज़ल 15

अशआर 13

अब उस मक़ाम पे है मौसमों का सर्द मिज़ाज

कि दिल सुलगने लगे और दिमाग़ जलने लगे

यूँ भी किया है हम ने हक़-ए-दिलबरी अदा

अपनी ही जीत अपने ही हाथों से हार दी

हैं इन में बंद किसी अहद-ए-रस्त-ख़ेज़ के अक्स

ये मेरी आँखें अजाइब-घरों में रख आना

है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार

समझ सको तो मिरा नुत्क़-ए-बे-ए-ज़बाँ ले लो

हौसला सब ने बढ़ाया है मिरे मुंसिफ़ का

तुम भी इनआम कोई मेरी सज़ा पर लिख दो

पुस्तकें 4

 

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