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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़रहत अब्बास

ग़ज़ल 6

अशआर 23

दोनों लाज़िम हैं ला-ज़वाल भी हैं

इक तिरा हुस्न इक मिरा ये इश्क़

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हर तरफ़ दोस्ती का मेला है

फिर भी हर आदमी अकेला है

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तेरे साँचे में ढल गया आख़िर

शहर सारा बदल गया आख़िर

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हार जाएगी ज़िंदगी लेकिन

हारने का नहीं मिरा ये इश्क़

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जिसे भी दोस्त बनाया वो बन गया दुश्मन

ये हम ने कौन सी तक़्सीर की सज़ा पाई

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