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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़र्रुख नवाज़ फ़र्रुख़

ग़ज़ल 5

 

अशआर 2

ग़ज़ल लिख कर तिरी दीवार पर लटका के जब आता

तो सारी रात फिर गिर्या दर-ओ-दीवार करता था

जिसे तुम चाह कर भी पार हरगिज़ कर नहीं पाए

में टूटी-फूटी कश्ती से वो दरिया पार करता था

 

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